कैैसा है ये मन - पागल पंछी -मिथिलेश कैसा है ये मन ----------------‐---- दिव्य है, सूरज- किरण सा , और पावन आत्मा सा , मलय सा सुरभित, सुकोमल , नाम कुछ उसका नहीं है ,.... प्राण की डोरी उसे है बांध बैठी , मुक्त मन उन्माद के क्षण जी गया है , प्यास पनघट पर, कहो किसकी बुझी है?, और पथिक भी वीतरागी हो गया है ,..... पी न पाया मधु कलश से ,फिर पिएंगे, मृत्यु कैसे रोक लेगी, फिर जिएंगे। .. ...
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