रीती गागर
- मिथिलेश
रीती गागर
सारी उमर कटी पनघट पर,
रीती गागर ले लौट चली।
छोटे छोटे थे हाथ मगर
तारे छूने की होड़ चली ....
संवेदन है मन की खुशबू,
कोमलता जीवन का गुनाह,
पत्ते झड़ जाते हर नग के,
तुम ठूंठ तले लेना पनाह.....
.
कितना भागे ,न कहीं पहुंचे,
सब घेरे मे हैं दौड़ रहे ,
पीछे वाला आगे पहुंचा ,
आगे वाला अब पीछे है...
अड़ जाना तो आभूषण है,
झुक जाना मन की कमजोरी,
हर पंखुड़ी चाहे झर जाए,
फूलों को छूना है गुनाह।।।
सारी उमर कटी पनघट पर,
रीती गागर ले लौट चली।
छोटे छोटे थे हाथ मगर
तारे छूने की होड़ चली ....
संवेदन है मन की खुशबू,
कोमलता जीवन का गुनाह,
पत्ते झड़ जाते हर नग के,
तुम ठूंठ तले लेना पनाह.....
.
कितना भागे ,न कहीं पहुंचे,
सब घेरे मे हैं दौड़ रहे ,
पीछे वाला आगे पहुंचा ,
आगे वाला अब पीछे है...
अड़ जाना तो आभूषण है,
झुक जाना मन की कमजोरी,
हर पंखुड़ी चाहे झर जाए,
फूलों को छूना है गुनाह।।।
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