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सूची और ब्लोग कैसे खोले



 सूची और ब्लोग कैसे खोले

             - मिथिलेश खरे

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सपना बचपन का

सपना बचपन का             -मिथिलेश सपना बचपन का  एक सपना मुझे बचपन से बार-बार आता था ।जबलपुर के घर का पहला कमरा है ।उसमें बीच में कोई सफेद चादर ओढ़ कर सोया हुआ है ।चादर पूरी इस तरह से  ओढ रखी है कि सोने वाले का मुंह नहीं दिख रहा। घर में ढेर सी औरतों का जमावड़ा है । मेरी मां बीच में बैठी हुई है । फिर कुछ लोग आए चादर ओढ़े उस आदमी को वैसे ही कंधे पर उठाकर ले जाने लगे । मां जोर से    चिल्लाने  और  रोने लगी और भागने लगती है। मैं मां की साड़ी का पल्ला पकड़ के खड़ी हो जाती हूं। भागती हुई मां को औरतों  ने बहुत जोर से पकड़ रखा है ।चारों ओर  से जकड़  रखा है । मै औरतों की इस भीड़ में घुस कर अपने छोटे छोटे हाथों से उन औरतों को मार रही हूं । मुझे  उन पर बहुत गुस्सा आ रहा है । मैं  सोच रही हूँ कि  वे सब मिलकर मेरी मां को बहुत तंग कर रही हैं। और मैं मां को बचा रही हूं । यह सपना मुझे करीब 12 वर्ष की उम्र तक कई बार आता रहा । बड़े होने पर मुझे समझ में आया कि यह सब क्या है। पिताजी की मौत अचानक ह्रदय गति रुक जाने से हो...

मै जीती रहूंगी

  मैं जीती रहूंगी           *मिथिलेश खरे          मैं जीती रहूंगी जिंदगी के पहले ,मर जाना नहीं, बल्कि जिंदगी के बाद भी जीना चाहती हूँ मैं , जीती रहूँगी यूं ही पता है मुझे- हां ,पता है मुझे ..... पता है मुझे पता है मुझे जब कभी मेरी बेटी कोई पुरानी नोटबुक के अनदेखे पन्नों को पलटेगी, तब बार-बार मेरे शब्द उसके दिल में उतर जायेंगे, उसके दिल में उतर जाएंगे पहले जो अनकहा रह गया था , वह सब फिर से कह जाएंगे ! पता है मुझे, पता है मुझे --- पता है मुझे पता है मुझे मेरी धीमी सी आवाज कभी प्यार की ,कभी डांट की कभी शिकायत की ,कभी उलाहना की अकेले में उसे बार-बार सुनाई देगी उसकी गहरी आंखों के कोरों को अनायास ही नम करती रहेगी ! य...