सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सितंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

स्कालरशिप का दाग

 स्कालरशिप का दाग                -मिथिलेश कुमारी               स्कूल जीवन की वह घटना मुझे कभी नहीं  भूलती । उस समय मेरी उम्र 13 -14 के बीच में थी । कक्षा आठवीं में वार्षिक परीक्षा में विषय प्रथम स्थान मिला था, सारे लड़कों के बीच । हम लोग सिर्फ 3 लड़कियां थी , मैं शशि और प्रभा । शशि और मैं दोनों पढ़ने में अच्छे थे । और प्रभा  बिल्कुल घरेलू थी । कक्षा नौवीं के  प्रारम्भ  से, हमें विषयों का  चुनाव करना पड़ता था । हमने साइंस ग्रुप लिया, गणित  विषय  के साथ । इसके पहले लड़कियां कभी साइंस  ग्रुप नहीं लेती थी।  कक्षा नौवीं के तिमाही परीक्षा में जो सबसे ज्यादा अंक लाता था , उसे राज्य सरकार की ओर से  तीन  साल के लिए स्कॉलरशिप दी जाती थी । गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल शुरू हो चुके थे । और फिर गणेश उत्सव की तैयारियां चल रही थी । स्कूल की तरफ से , हमें कार्यक्रम देना होता था ।    हमारे एक शिक्षक ने , एक बड़ा एकांकी नाटक तैयार किया था।  "ठाकुर का घर ...

जादू का खेल

जादू का खेल            - मिथिलेश कुमारी                               जादू का खेल        तब मैं जबलपुर के हितकारिणी  स्कूल  में कक्षा पांचवी में पढ़ती  थी। मिसेस सेमुएल, ऊची पूरी, दबंग महिला,  मेरी क्लास टीचर थी। वे अंग्रेजी और गणित विषय  पढ़ाती थी ।तिमाही परीक्षा हुई । और मैडम अंग्रेजी का पेपर जांच कर  कक्षा में लेकर आई । बच्चों को नंबर दिखाने के लिए उन्होंने  जांची हुई कापियों  का बंडल खोला।  पेपर दिखाने के पहले  बोली---- यह रोल नंबर 12 कौन है? यह रोल नंबर मेरा था। मैं बहुत घबरा गई ।मैंने सोचा ,मैं फेल हो गई हूं । इसलिए मैडम  मेरा पेपर सबको दिखाना चाहती  है । मैंने हाथ ऊपर उठाया और धीरे से बोली-मैडम, यह रोल नंबर मेरा है। मैडम ने देखा , छोटी सी दुबली पतली, धीमी आवाज वाली लड़की हाथ उठाए हुए हैं। मैडम बोली- अच्छा , तुम ऐसा करो , तुम  डेस्क  के ऊपर खड़ी हो जाओ । मैं डर गई ।मुझे लगा मैडम मुझे फेल ह...

दो सहेलियां

  दो सहेलियां           - मिथिलेश कुमारी                                  दो सहेलियां प्रिय  शशि,             अब यह  पितृपक्ष आ गया। तुम पितरों में शामिल हो। और कितना अजीब है, अजीब है ना ? पर मैं कैसे स्वीकार करूं कि  तुम अब हो  ही नहीं। तुम तो हर समय बोलती रहती हो, मुझसे। खाने के समय बोलती हो  "क्या रे मिथलेश , इतना कम क्यों खाती है? यह कोई खाना  है ? देख ना , तेरे लिए बाटी चूरमा के लड्डू बनाये  और तूने खाये भी नहीं "। अब खाने की बात चली, तो बहुत पुरानी बात याद आ गई। हम लोग सिहोरा में थे। आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे। तुम्हारे अम्मा- बाबूजी , एक रात घर पर नहीं थे। तुम्हारे छोटे भाई मुन्ना को डॉक्टर को दिखाने के लिए ,जबलपुर गए थे ।इसके पहले मेरे घर से इजाजत मिल गई थी कि एक रात मैं  तुम्हारे  घर  रहूगी।  क्योंकि तुम अकेली हो रात में। हम दोनों की उम्र 13 वर्ष की थी। तब हम कितने खुश  थ...

खूबसूरत गुनाह

  ख़ूबसूरत गुनाह              -मिथिलेश कुमारी                              खूबसूरत गुनाह   प्रिय शशि , फिर तुम्हारी बहुत याद आई। किसी को उतनी सच्चाई और गहराई से वह बात नहीं बता सकती जो तुम्हें बता कर रखती थी, और एक तुम थी जो उस निषिद्ध सी लगने वाली बातों को सुनकर, मेरी तरफ मुस्कुरा कर, देख कर ,बोला करती थी  --- तो क्या हुआ ? अब बताओ, फिर ऐसा क्यों होता है? शरीर के साथ मन की  उम्र  क्यों नहीं बढा करती ?  मन क्यों वृद्ध नहीं होता ? वैसा का वैसा ही बना रहता है। 40 50 सालों का अंतर जैसे एक क्षण में लांघ जाता है ।  याद आता है मुझे, भाभी से अनुमति लेकर तुम्हारे घर आया करती और   भाभी कोई ना कोई काम जरूर दे देती थी । जाओ शशि के घर से कपड़े सिल लाना।   वह 10 मिनट का रास्ता जो तुम्हारे -हमारे घर के बीच में था, कितनी मुश्किल से पार होता था,   दौड़ते दौड़ते तुम्हारे घर आती थी । मुझे याद है , तुम्हारी  अम्मा   आ...

अधूरी आस

  अधूरी आस              - मिथिलेश कुमारी                                   अधूरी आस               उस अधूरी आस को फिर                रात भर जीती रही ,जो               कल्पना के पंख बांधे                 आस्माँ को छू रही थी-----               डोर फिर जब हाथ आई ,               तब धरा पर खींच लायी ,               सत्य का पिंजरा खुला था ,               राह तकता बेबसी का ------               किन्तु जब आँखे खुली तो,               ओस का मोती दिखा था,               झिलमिला...

Dard - दर्द

  Dard- दर्द - सच कहता हूं             - मिथिलेश कुमारी                                                     दर्द                        सच कहता हूँ,                      पाला    नहीं    है ,                     दर्द     को     मैने,                   दर्द     खुद    आकर,                   मुझे सहला   जाता है,                 जब भी अकेला  होता हूँ,                   मन को बहला जाता है  ....

अनुत्तरित प्रश्न

  अनुत्तरित प्रश्न ???            - मिथिलेश कुमारी      21 August 2020        अनुत्तरित प्रश्न ???     प्रश्न भी कैसे अजीब होते हैं?  बार-बार डुबो देती हूं   विचारों के समंदर में,  फिर भी,  देखो ना   ?                           लौट आते हैं जल्दी,  और उभर कर आ जाते हैं  वापस , दिल के और भी करीब ------ प्रश्न  भी कितने अजीब होते  हैं ?     उत्तर खोजना तो , बहुत दूर की बात है , प्रश्नों को शब्दों का ,                असली जामा पहनाने में,           ?     बहुत  डर लगता है,      खुद से भी, जमाने से भी ..... प्रश्न भी कितने अजीब होते हैं ? सचमुच बहुत अजीब होते हैं ......      अर्थ को पकडें तो ,      शब्द फिसल  जाते ह...

देह गंध

देह गंध        - मिथिलेश कुमारी      03 September 2020                   10:53                                               देह गंध               देह गंध महकी  तो,              पोर पोर  भीग गया,                                       जीवन की अमराई,               मन  पागल बहक गया ××××                                  नौका को खेते हम               डूबते उतराते से                बहुत दूर आ पहुंचे       ...

बेबसी----

  बेबसी----            - मिथिलेश कुमारी                                 बेबसी -----                  प्राण अकुलाये बहुत ,                      गम सह न पाए ,                    अधर तो कांपे मगर                  कुछ कह ना पाए ×××××        आंख में आंसू भरे,         फिर बह ना पाए ,         क्या कहूं कैसे कहूं ?         जो रुक न पाए ×××××                   बाग में कुछ फूल थे,                    जो खिल न पाये,                   दीप में बाती रही,  ...