जादू का खेल
- मिथिलेश कुमारी
जादू का खेल
तब मैं जबलपुर के हितकारिणी स्कूल में कक्षा पांचवी में पढ़ती थी। मिसेस सेमुएल, ऊची पूरी, दबंग महिला, मेरी क्लास टीचर थी। वे अंग्रेजी और गणित विषय पढ़ाती थी ।तिमाही परीक्षा हुई । और मैडम अंग्रेजी का पेपर जांच कर कक्षा में लेकर आई । बच्चों को नंबर दिखाने के लिए उन्होंने जांची हुई कापियों का बंडल खोला। पेपर दिखाने के पहले बोली----
यह रोल नंबर 12 कौन है? यह रोल नंबर मेरा था। मैं बहुत घबरा गई ।मैंने सोचा ,मैं फेल हो गई हूं । इसलिए मैडम मेरा पेपर सबको दिखाना चाहती है । मैंने हाथ ऊपर उठाया और धीरे से बोली-मैडम, यह रोल नंबर मेरा है। मैडम ने देखा , छोटी सी दुबली पतली, धीमी आवाज वाली लड़की हाथ उठाए हुए हैं। मैडम बोली- अच्छा , तुम ऐसा करो , तुम डेस्क के ऊपर खड़ी हो जाओ । मैं डर गई ।मुझे लगा मैडम मुझे फेल होने की सजा दे रही है।×××
मै सिर नीचा करके डेस्क के ऊपर खड़ी हो गई। फिर मैडम ने कहा -सब लड़कियों , ताली बजाओ। मैं शर्म के मारे झुक गई। देखो, मेरा कितना अपमान हो रहा है । फिर मैडम बोली-- इस लड़की को इंग्लिश में highest marks मिले हैं . सबसे ज्यादा साढे 49 , पचास में से। वैसे आधा नंबर भी काटने लायक नहीं था। इसने कोई भी गलती नहीं की। फिर तो मैं बहुत खुश हो गई। उस दिन से मैडम ने मुझको क्लास मॉनिटर बना दिया। बाकी लड़कियां मुझसे बड़ी थी ।मेरी ऊंचाई भी बहुत कम थी ।आवाज भी बहुत धीमी थी। मुझे लड़कियों को कंट्रोल करने में बहुत मुश्किल होता था। जब वे हल्ला करती तो, मैं हाथ में स्केल लेकर ,उनके पास तक जाती और भरपूर आवाज निकाल कर उनको उधम करने से रोकती, कभी-कभी उन को चुप करने के लिए मैं जोर-जोर से टेबल पर डस्टर पटकती ।यही मैडम गणित भी पढ़ाती थी ।मैडम इतना अच्छा पढ़ाती थी कि मुझे हमेशा पूरे नंबर आते थे ।कोई मुझे घर पर नहीं पढ़ाता था । पर मैडम ने इतनी योग्यता और प्यार से पढ़ाया कि गणित विषय मेरा प्रिय विषय हो गया । कक्षा में प्रथम आने पर, मैं अपना रिपोर्ट कार्ड मां को बता
कर बहुत खुश हो जाती थी मां दुलार कर कहती-- मेरी होशियार बिटिया।। ।कितनी छोटी छोटी खुशियां थी ,बचपन की
फिर वह जादू वाला दिन याद आता है। हमारे स्कूल में जादूगर आने वाला था, लड़कियों को जादू दिखाने। 2 दिन पहले सब छात्राओ से एक एक-एक पैसा लिया गया था,जादूगर के लिए । मैं मॉनिटर थी , लिस्ट बनाकर मैडम को देने की जिम्मेदारी मेरी थी। मैंने सबसे पैसे इकट्ठे किये , लिस्ट बनाई और मैडम को पैसे दे दिए। उसके बाद मैं सोचने लगी कि मेरे हिस्से का तो पैसा मैंने दिया ही नहीं। मां से मैंने पैसा भी नहीं मांगा था। मां बहुत तकलीफ से घर का खर्च चलाती थी। मुझे 10 साल की छोटी उम्र में भी, यह सब समझ में आता था। मैंने सोचा ,जादू नहीं भी देखा, तो चलेगा । मां को क्यों तंग करूं ? जादू वाले दिन ,सब लड़कियों की लाइन बनाकर , मैं ग्राउंड तक ले गई । खुद वापस आकर क्लास में बैठ गई। मुझे पता था, जादू देखने का अधिकार मुझे नहीं है । क्योंकि मैंने जादूगर को देने वाला एक पैसा नहीं दिया है ।मुझे खुशी थी ,कि यह एक पैसा मैंने मां से नहीं मांगा । और उनको परेशान नहीं किया। फिर जब ग्राउंड पर जादू का खेल चल रहा था और मैं क्लास में अकेली बैठी थी, तभी अचानक मिसेस सैमुअल , जो मेरी क्लास टीचर थी , अचानक क्लास में आ गई। उन्होंने मुझे अकेले बैठे देखा तो बोली- अरे तुम यहां क्यों बैठी हो अकेली ? जादू देखने क्यों नहीं गई, ग्राउंड पर ? जल्दी जाओ खेल शुरू हो गया है। मैंने धीरे से कहा - मैडम ,मैं नहीं जाऊंगी जादू देखने । क्योंकि मैंने एक पैसा नहीं दिया है ,जो जादूगर के लिए देना चाहिए। मैडम अजीब नजरों से मुझे देखने लगी शायद मेरी ईमानदारी को या भोलेपन को या समझदारी को। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और बोली -जल्दी चलो ,मेरे साथ । और वे मुझे ग्राउंड पर छोड़ कर आई । मैडम की सहानुभूति मैं जीवन भर नहीं भूली।।।××××
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