Dard- दर्द - सच कहता हूं
- मिथिलेश कुमारी
दर्द
सच कहता हूँ,
पाला नहीं है ,
दर्द को मैने,
दर्द खुद आकर,
मुझे सहला जाता है,
जब भी अकेला होता हूँ,
मन को बहला जाता है ......
सदियों से अन्धेरे में,
दुबक कर बैठा था ,
शब्दों के दिये जले तो,
यादों की डोरी थामकर,
खुद बाहर निकल आया,
पाला नही है दर्द को मैने.......
.
पर एक बात कहूँ?
असली अहमियत तो,
दर्द की भी बहुत है .....
दर्द है , इसीलिए तो ,
गुलजार की नज्में हैं ,
जगजीत की आवाज,
जिन्दा है अभी तक,
अमृता की कहानियां.
बोलती रहती हैं .......
तन्हाई के इन लम्हों को,
एक छोटी सी कविता मे,
बदल पाने का,
अदना सा मेरा ,
अपना अंदाज है ,
दर्द को पाला नही है मैने,----
दर्द को पाला नही है मैने.......
सच कहता हूँ,
पाला नहीं है ,
दर्द को मैने,
दर्द खुद आकर,
मुझे सहला जाता है,
जब भी अकेला होता हूँ,
मन को बहला जाता है ......
सदियों से अन्धेरे में,
दुबक कर बैठा था ,
शब्दों के दिये जले तो,
यादों की डोरी थामकर,
खुद बाहर निकल आया,
पाला नही है दर्द को मैने.......
.
पर एक बात कहूँ?
असली अहमियत तो,
दर्द की भी बहुत है .....
दर्द है , इसीलिए तो ,
गुलजार की नज्में हैं ,
जगजीत की आवाज,
जिन्दा है अभी तक,
अमृता की कहानियां.
बोलती रहती हैं .......
तन्हाई के इन लम्हों को,
एक छोटी सी कविता मे,
बदल पाने का,
अदना सा मेरा ,
अपना अंदाज है ,
दर्द को पाला नही है मैने,----
दर्द को पाला नही है मैने.......
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