ख़ूबसूरत गुनाह
-मिथिलेश कुमारी
खूबसूरत गुनाह
प्रिय शशि ,
फिर तुम्हारी बहुत याद आई। किसी को उतनी सच्चाई और गहराई से वह बात नहीं बता सकती जो तुम्हें बता कर रखती थी, और एक तुम थी जो उस निषिद्ध सी लगने वाली बातों को सुनकर, मेरी तरफ मुस्कुरा कर, देख कर ,बोला करती थी --- तो क्या हुआ ?
अब बताओ, फिर ऐसा क्यों होता है? शरीर के साथ मन की उम्र क्यों नहीं बढा करती ? मन क्यों वृद्ध नहीं होता ? वैसा का वैसा ही बना रहता है। 40 50 सालों का अंतर जैसे एक क्षण में लांघ जाता है ।
याद आता है मुझे, भाभी से अनुमति लेकर तुम्हारे घर आया करती और भाभी कोई ना कोई काम जरूर दे देती थी । जाओ शशि के घर से कपड़े सिल लाना।
वह 10 मिनट का रास्ता जो तुम्हारे -हमारे घर के बीच में था, कितनी मुश्किल से पार होता था, दौड़ते दौड़ते तुम्हारे घर आती थी ।
मुझे याद है , तुम्हारी अम्मा आवाज देती थी। शशि देख जल्दी, मिथिलेश आई है। फिर हम दोनों हाथ में हाथ लेकर इस तरह बैठते थे ,जैसे कभी छोड़ेंगे ही नहीं।
तुम्हारा आदेश होता था, कोई कमरे में नहीं आएगा। छोटी बहन इंदु भी नहीं ।और कोई बीच में बुलाएगा भी नहीं ।अम्मा भी जैसे सब समझती थी। हम दो सहेलियों के बीच की बातें। सिर्फ खाना देने आती थी।××
तो हां तुम आज उस पार हो दुनिया के, मैं इस पार। सुन रही हो ना। ऐसा क्यों होता है ? शशि उम्र जैसे थम सी गई है थम ही नहीं गई , कई दशक पीछे लौट गई है। कुछ बातों को याद करके ,अकेले में मुस्कुरा लेती हूं और कुछ अजीब सी कल्पनाएं करके, सवाल जवाब खुद से ही कर लेती हूँ ।×××
कल्पना के रंग भी अजीब है । जैसे उसमें मन की, शरीर की , ना कोई उम्र है , न मर्यादा, ना रोक ।और ना इस बात का डर है, कि कोई क्या कहेगा। मुझे लगता है, यह इस बात का प्रमाण है कि प्राणों की उम्र नहीं होती। वह चिरनवीन है । तभी तो प्राणों का प्राणों के प्रति, इतना आकर्षण है, पूरे समय सिर्फ दिवास्वप्न की तरह देखते रहना, सुनते रहना और लगातार बोलते रहना।
शशि , अब समझी ना तुम ? लो ,अब बोलो,
सही है या गलत? पर है जरूर कुछ अजीब सा, अद्भुत सा, अकथनीय भी । पर खूबसूरत भी ।
और मुझे पता है , जीवन के उस पार बैठी तुम धीरे से मुस्कुरा कर , कह रही हो -- तो क्या हुआ मिथिलेश? कोई गुनाह तो नहीं हुआ ? और अगर हुआ भी तो ,बहुत खूबसूरत है।
बहुत खूबसूरत है !! ×××÷××××××÷×
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