देह गंध
- मिथिलेश कुमारी
03 September 2020
10:53
देह गंध
देह गंध महकी तो,
पोर पोर भीग गया,
जीवन की अमराई,
मन पागल बहक गया ××××
नौका को खेते हम
डूबते उतराते से
बहुत दूर आ पहुंचे
सब पीछे छूट गया ××××
साथ चले थे लेकिन
कहीं कोई उतर गया
जल्दी में था शायद
लहरों संग दौड़ गया ×××××
किंतु मैं रुका नहीं ,
एकाकी जाना है ,
मंजिल है दूर कहीं
पथ भी अंजाना है××××
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