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नवंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अब मैं इसे संभालू कैसे ?

  अब मैं इसे संभालू कैसे ? तूने झोली भरी कि इतनी  डर है मुझे संभालू कैसे? इतना दे डाला दाता ने अब यह बता बचा लूँ कैसे ,? अब मै इसे संभालू कैसे ? आंचल है मैला, जर्जर भी  अंतर है टूटा चोटिल भी इतनी शक्ति नहीं अब मुझ में  तेरा दिया निभा लूं कैसे ? अब मैं इसे सम्हालूं कैसे? मेरी ही गागर फूटी थी, तूने तो पूरी भर दी थी, बूँद बूँद रिस गई अगर तो दोष तुम्हीं पर डालूं कैसे? अब मैं इसे सम्हालूं कैसे ? मन को तो आदत है ऐसी, सदा शिकायत ही करता है, ओसकणों से प्यास बुझाता, अब इसको समझा लूं कैसे?  तूने झोली भरी कि इतनी  डर है मुझे संभालू कैसे? इतना दे डाला दाता ने अब यह बता बचा लूँ कैसे ,?

बडी दूर चलना है

  बडी दूर चलना है           -मिथिलेश खरे                  बडी दूर चलना है ..आसमान वृद्ध हुआ शादियां रचा रचा आदि अंत का रहस्य क्या कभी सुलझ सका ? काफिला बड़ा सही शख्स तो अकेला है खुशियों की चाहत में दर्द बड़ा झेला है-- सुबह जगी,सांझ ढली और दिन निकल गया, पता कुछ चला नही , कौन कब बदल गया----- दुनिया के मेले में, सब रँग अलबेले है, जीवन की चौसर में खेल बहुत खेले है--'---- कांधे पर कांवर है पाप पुण्य के पलड़े खाते हिचकोले हैं, थके पांव डोले हैं --- बड़ी दूर चलना है बड़ी दूर चलना हैll बड़ी दूर चलना है Xxxxx

बडी बुआजी

  बडी  बुआजी          -मिथिलेश                          बड़ी बुआ जी                बड़ी बुआ को हम लोगों से बहुत प्यार था ।हमारे साथ ही रहती थी। 18 वर्ष की थी जब फूफा जी नहीं रहे थे। उनकी ससुराल में प्लेग की बीमारी से उनकी मृत्यु हुई थी। फूफाजी के स्वर्गवास के बाद  उनकी सास ने कहना शुरू कर दिया था - कि यह  बहू  कुलक्षणी है , मेरे बेटे को खा गई  । पिताजी को जब अपनी बहन का दुख मालूम हुआ  तो वे उन्हें हमारे घर ले आए थे ,  हमेशा के लिए। मां के साथ बुआ की अच्छी जमती थी । बहुत खूबसूरत, थी, काम में बहुत कुशल और दिमाग की बहुत तेज थी बुआ,  पर कभी स्कूल नहीं गई थी ।जब हम लोग प्राइमरी कक्षाओं में बारहखडी और गिनती   लिखते थे , तब बुआ भी पास आकर बैठ जाती थी और देख देख कर पूरा लिख लेती थी। फिर हम से जांच कराने आती थी देखो ठीक लिखा है यह?मां भी  हमसे कहती थी - अगर इनको पढ़ने दिया गया होता तो यह कलेक्टर जरूर बनती । इ...

खरबूज़ का टुकडा

  खरबूज़ का टुकडा             -मिथिलेश             खरबूज का टुकड़ा                                                                           सिहोरा के पैतृक घर में हम सब इकट्ठे थे ।पिताजी का अंत काल हुए 5 वर्ष बीत गए थे । पिताजी के समय, घर की मालकिन मां होती थी और सारे निर्णय उनकी सहमति से होते थे। पिताजी के जाने के बाद 5 बच्चे पालने की जिम्मेवारी बड़े दोनों भाइयों ने ले ली थी। पर मां का जैसे वजूद ही खत्म हो गया था ।हम सब भाई बहन इसको महसूस करते थे और हर बात को यह सोचकर  सब्र कर लेते थे कि कभी समय बदलेगा। भाइयों के बच्चे भी हमारे छोटे भाई बहन की तरह थे। और मां ने अपने दुख को बच्चों की खुशी में छुपा लिया था । गर्मी के दिन थे।बड़े भैया एक बड़ा खरबूज लाए थे सुबह। दोपहर में माँ ने खरबूज काटा और उसकी फाँके कर के थाली में रखी ।फिर सर...

ज़िन्दगी का सफर

ज़िन्दगी का सफर        -मिथिलेश                 जिंदगी का सफर पल भटकता रहा , मन कसकता रहा, जिंदगी का सफर और लंबा हुआ---- जिंदगी का सफर और लंबा हुआ ---- हर नई आस खिलकर, जख्म बन गई, मुस्कुराहट मेरी, दर्द-ए-ग़म बन गई , क्या कभी मिल सकेगा, जो खोया हुआ ? जिंदगी का सफर और लंबा हुआ ------ हमें जीने का हक है, मरण का नहीं, देह जिंदा है अब तक, भरम तो नहीं ? स्वप्न झूठा जगत में, सभी का हुआ..... जिंदगी का सफर और लंबा हुआ ---- सांस चलती रही, जिंदगी थक गई, झूठ पलता रहा , असलियत मर गई। बातियां रह गई , लौ कहीं खो गई, फिर भी बाकी रहा, जो बुझा था दिया------- जिंदगी का सफर और लंबा हुआ------' क्यों न जाने की हमको इजाजत मिली? द्वार पिंजरे का अब भी है , जर्जर हुआ .. जिंदगी का सफर और लंबा हुआ ---- जिंदगी का सफर और लंबा हुआ ।।

पंखों मे भविष्य बन्दी है

  पंखों में भविष्य बन्दी है              -मिथिलेश कुमारी            पंखों में भविष्य बंदी है....               ----------------- हर भविष्य की तह में संचित, इक सुंदर सपना होता है , कभी डगर में मिले अचानक , क्या वह मन अपना होता है ? पंखों में भविष्य बंदी है,  स्मृति का इतिहास बहुत है, कभी अंत मंजिल पर होगा, आशा कम विश्वास बहुत है ....... गम ना कर जो धरती छूटी,  उडने को आकाश बहुत है,  उड चल धीरे धीरे पंछी , जीवन में अवकाश बहुत है ..... कम ही तुझे सहारा देंगे, करने को उपहास बहुत है, पतझड़ देख उदास हुआ क्यों ? आने को मधुमास बहुत है ..... उड़ते उड़ते रुक मत जाना, क्षण भर का विश्राम बहुत है, इस जग पर प्रतीति मत करना, ईश्वर का आभास बहुत है ... पंखों में भविष्य बंदी है, ख्यालों का आवास बहुत है .... आशा आसमान थामे है , और क्षितिज भी पास बहुत है ...... ××××××××××