पंखों में भविष्य बन्दी है
-मिथिलेश कुमारी
पंखों में भविष्य बंदी है....
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हर भविष्य की तह में संचित,
इक सुंदर सपना होता है ,
कभी डगर में मिले अचानक ,
क्या वह मन अपना होता है ?
पंखों में भविष्य बंदी है,
स्मृति का इतिहास बहुत है,
कभी अंत मंजिल पर होगा,
आशा कम विश्वास बहुत है .......
गम ना कर जो धरती छूटी,
उडने को आकाश बहुत है,
उड चल धीरे धीरे पंछी ,
जीवन में अवकाश बहुत है .....
कम ही तुझे सहारा देंगे,
करने को उपहास बहुत है,
पतझड़ देख उदास हुआ क्यों ?
आने को मधुमास बहुत है .....
उड़ते उड़ते रुक मत जाना,
क्षण भर का विश्राम बहुत है,
इस जग पर प्रतीति मत करना,
ईश्वर का आभास बहुत है ...
पंखों में भविष्य बंदी है,
ख्यालों का आवास बहुत है ....
आशा आसमान थामे है ,
और क्षितिज भी पास बहुत है ......
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