ज़िन्दगी का सफर
-मिथिलेश
जिंदगी का सफर
पल भटकता रहा ,
मन कसकता रहा,
जिंदगी का सफर और लंबा हुआ----
जिंदगी का सफर और लंबा हुआ ----
हर नई आस खिलकर,
जख्म बन गई,
मुस्कुराहट मेरी,
दर्द-ए-ग़म बन गई ,
क्या कभी मिल सकेगा,
जो खोया हुआ ?
जिंदगी का सफर और लंबा हुआ ------
हमें जीने का हक है,
मरण का नहीं,
देह जिंदा है अब तक,
भरम तो नहीं ?
स्वप्न झूठा जगत में,
सभी का हुआ.....
जिंदगी का सफर और लंबा हुआ ----
सांस चलती रही,
जिंदगी थक गई,
झूठ पलता रहा ,
असलियत मर गई।
बातियां रह गई ,
लौ कहीं खो गई,
फिर भी बाकी रहा,
जो बुझा था दिया-------
जिंदगी का सफर और लंबा हुआ------'
क्यों न जाने की हमको
इजाजत मिली?
द्वार पिंजरे का अब भी है ,
जर्जर हुआ ..
जिंदगी का सफर और लंबा हुआ ----
जिंदगी का सफर और लंबा हुआ ।।
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