अन्तिम शब्द
-मिथिलेश खरे
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अंतिम शब्द
आज अंतिम शब्द कहने को मन करता है ।बड़ी लंबी यात्रा थी, यादों की । 4 साल की उम्र से लेकर अब तक की, पूरे 76 साल की यात्रा है। मस्तिष्क में उमड़ रहे गुबार को शब्दों में कैद किया, तो कहीं संस्मरण बने ,कहीं कविताएं और कहीं कहानी। उन्हें क्रम से नहीं रख सकती क्योंकि- क्या नया है क्या पुराना है ,एक सा ही लगता है। इन सब को सहेजने की, ब्लॉग में रखने की जिन्होंने प्रेरणा दी ,प्रयास किया, उनका शुक्रिया शब्दों से नहीं अदा हो सकता है।
मेरा हृदय उनके द्वारा किये गए उपकार का भार सदा वहन करता रहेगा, जीवन के अंत तक। कभी लगता है हम उनको क्यों नकार देते हैं जिनके कारण दुख पहुंचा ? वास्तव में स्रजन का आरंभ उस पीड़ा से ही तो हुआ है, जो हृदय को चीर कर, बहुत गहरे मैं जा बैठी थी।उन को भी धन्यवाद जो दुख दे गए ,जाने अनजाने में और उनको भी धन्यवाद जो सुंदर, सुखद क्षणों के साथी बने।उम्र के इस पड़ाव पर , अब जीवन के 80 वर्ष पूरे हो गए, एक बार पलट कर पूरी फिल्म देख लेती हूं ,इन कविताओं और लेखों के माध्यम से ।प्रत्येक के साथ कोई घटना, कोई याददाश्त जुड़ी होती है ।जो घटित हुआ वह कभी मिटा नहीं ।उसको भूला जा सकता है ,यह प्रकृति का नियम है । उन सब को हृदय से धन्यवाद जो किसी न किसी रूप में इस छोटे से साहित्यिक यज्ञ से जुड़े रहे। और आज इन शब्दों को पढ़कर मेरे लेखन को सार्थक कर रहे हैं....
और अंत में परमात्मा के प्रति मेरे उद्गार
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धन्यवाद है उसे कि जिसने ,जग में मुझे बुलाया है,
करके कृपा असीम,मुझे जीवन का खेल दिखाया है. धन्यवाद! तहे दिल से शुक्रिया।
अन्तिम शब्द क्योँ?
जवाब देंहटाएंअभी तो ज़िन्दगी बाकी है
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