प्राणॉ की उम्र नहीं होती
.- मिथिलेश
प्राणों की उम्र
उड ना जाये पंछी,उसको
पिंजरे में रक्खा जाता है...
और उसी पिंजरे के ऊपर
मन ,धन भी वारा जाता है।
सारे ताने बाने ,रिश्ते
नातोंसे बांधे जाते है
और महल की दीवारों में
. ,चीखों को रोका जाता है।।।
आगे खुला गगन है सारा,
मालिक ने भी प॔ख दिये है,
कैसे बाहर जा सकता हूं?
सोच रहा पंछी बेचारा !
अब उडना भी भूल गया है,
ऐसी बीत गई तरुणाई,
समय गया ,अब क्या पछताना?
घड़ियां भी आखिर की आई।
कुछ भीतर अब भी जिन्दा है,
वह मुझसे अब भी कहता है,
कुछ भी नहीं गंवाया तुमने
उम्र नहीं होती प्राणों की,
प्राण अजर है, प्राण अमर हैं...
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Bahut sunder
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