वे तितलियां
मिथिलेश खरे
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मेरे घर के सामने एक छोटा सा ब॔गलानुमा घर था। उसकी चहरदीवारी पर फूलों की हरी हरी बेलें पसरी रहती थी।.. दोपहर के समय में सड़क पर कोई नहीं दिखता था। मैं 5 साल की थी। सबकी नज़र बचाकर, मै उस चहरदीवारी के पास पहुँच जाती थी। जनवरी माह में सुंदर गुलाबी रंग के छोटे छोटे फूल उन बेलों को पूरा ढक देते हैं। मैं देर तक उन फूलों को देखती रहती थी। फिर रंग बिरंगी छोटी बड़ी तितलियां उन फूलों पर उडकर धीरे से बैठ जाती थी । मैं धीरे से चुपचाप उन फूलों के पास पहुंच जाती । .. अपनी उंगलियों और अंगूठे को जोडकर चिमटी की तरह बनाती, और तितली पकडने की कोशिश करती ।घंटे भर की मेहनत के बाद कोई छोटी तितली पकड़ में आ जाती ,..तो लगता सातवें आसमान पर पहुंच गई हूं ।
मेरा स्कूल घर के पास ही था. ।मैं तब पहिली क्लास में पढती थी। मेरे बड़े भाई जबलपुर की प्रदर्शनी से गोल्ड प्लेटेड कडे भाभी के लिए. लाये थे।.उनकी साइज छोटी थी, भाभी के लिए, तो भैया ने मुझे दे दिए। मैं चमकीले कडे पहिनकर बहुत खुश थी ।स्कूल जाते समय मां ने कहा...कडे उतरना नहीं ।कीमती है,ध्यान रखना।
जब स्कूल की छुट्टी होती थी , तो फाटक पर बहुत बहुत भीड़ हो जाती थी।। फाटक पर 4 सीढ़ियां थी जिनको पार करना होता था । मैं दुबली पतली, छोटी थी..तो रुक जाती थी कि थोड़ा बाद में निकलूंगी, वरना बड़ी लडकियां धक्का दे कर निकल जाती थी ।
जब मैं निकल रही थी ,तो सीढ़ियों एक बड़ी लड़की भी मेरे पास आ गई। मैंने देखा, उसने अपने हाथ में एक तितली पकड़ रखी है. ।.मैंने पूछा..मुझे यह तितली दे सकती हो?वह लड़की बोली.."पहिले मुझे अपने हाथ के कड़े दे दो..उसके बदले में तितली ले लो। मैं खुश हो गई उस सौदे से । फिर मैंने कहा.."कडे कैसे उतारूं? मुझसे नहीं बनता"। तब उस लड़की ने मेरे हाथों से दोनो कडे उतार लिए और मुझे तितली पकडा दी ।तब तक तितली में कोई हलचल नहीं थी, वह मर गई थी।
घर आकर मैंने एक कोने में तितली रख दी कि खाने के बाद देखूंगी। खाते समय भाभी ने देखा लिया ।कड़े कहां गए? मां भी चिल्लाई, बड़े कहां गुमा दिए? मैं बहुत रोने लगी। रोते रोते कोने में गई । मरी तितली उठाई और मां को दिखा दी कि इसके बदले में एक लड़की ने कडे उतार लिए..मां ने सर पीट लिया. ।मूर्ख लड़की!!! मां ने छोटे भैया को स्कूल दौडाया ।देख जाकर ,कौन लड़की इसके कडे ले गई। पर वह लड़की तो कबकी घर जा चुकी थी। मां ने मुझे डपटते हुए कहा.. कल
सबेरे जल्दी जाकर सब कक्षाओं में जाना । पता करो, कौन लड़की है। कडे वापिस लेकर आओ। भैया जो 5 साल बडे थे ,दिन भर सबको बताते रहे.।देखा, मूरख को? मरी तितली ले आई और कड़े बेच आई. !!!..मैं डर के मारे छुपकर बैठ गई। अकेले में जाकर रोती रही..उसके बाद स्कूल में वह लड़की मुझे कभी नहीं दिखी ।हां वर्षों तक घर में मेरे पागलपन की चर्चा होती रही। .पर आज भी वे रंगबिरंगी तितलियां मेरे मन के इर्द गिर्द उड़ा करती है।..उनको मैंने अपने ब्रश और रंगो से पकडकर कागजों पर चिपका रखा है..और मोबाइल में कैद कर लिया है, हमेशा के लिए..पर अब वे जीवंत है ।
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आपने बहुत ही अच्छा लिखा हे। मेने आपका यह आर्टिकल पढ़ा। मुझे बहुत अच्छा लगा। मेने आपके ही तरह विभिन्न प्रकार के फूल और उनके नाम को लिखा हे।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर व दिल को छू लेने वाली कहानी
जवाब देंहटाएंबाल मन का सही चित्रण
Such a hearttouching memory buaji
जवाब देंहटाएंबालमन का भोलापन , उसकी मासूमियत --इसे ही तो कहते हैं। मरी तितली के बदले चमचमाते कड़े --बचपन का भोलापन ही ये करवा सकता है । फिर तो ......... सब बेवकूफी है । पर स्मृतियां मधुर लगती हैं । फिर चाहे दुखी करें या सुखी।
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