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वे अंकल जो कभी बोले नही

 वे अंकल जो कभी बोले नही

                  - मिथिलेश

 


वे   अंकल जो कभी बोले नही ___________________

       सिहोरा  के हमारे  पुश्तैनी घर में बहुत लोग  थे।... भाई, बहिन, भाभियां, भाभियो के बच्चे, बड़ी बुआजी, मां। घर के पास ही एक दुकान थी ।जिसे सब मामाजी की दुकान कहते थे। हमें उस दुकान में सब कुछ मिलता था। कागज, पेंसिल, किताब, फाउंटेन पेन, ज्योमेट्री बॉक्स, स्लेट। सबसे बाहर  रखी , कांच की बरनियो में मीठी गोलियां होती थी, पीली लाल सफेद.. पेपरमिंट की, संतरे के रंग  की  लेमनचूस  की, जीरा बटी की छोटी छोटी खट्टी मीठी  छोटी छोटी गोलियाँ । वही सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र था, हम बच्चों के लिए।

                   कुछ  अधेड उमर के लोग भी दुकान के सामने जमा होते थे ।बाजू में कोई पान की दुकान थी और मामाजी की दुकान में सिगरेट के पैकेट भी रखे होते थे।मामाजी कुछ लाइटर जैसी चीज भी रखते हैं जिस से आग की  लौ निकालकर,सिगरेट जला कर, लोग सिगरेट पीते  थे  और  धुआँ निकालते रहते  थे, मुँह से भी और नाक से भी।

                उस समय मेरी उमर कोई ४..५ बरस की रही होगी। जैसे ही मुझे एक पैसा मिलता, मैं  फौरन नंगे   पैर दौड़  कर मामाजी की दुकान पहुच जाती। मुझे गोली या  चाकलेट  खरीदना होता था।  उस दिन भी  शाम को  मैं  अपना छेद वाला  एक  पैसा  लेकर दुकान  पर गई । दुकान कुछ ऊंचाई पर थी  ।मैं छोटी तो थी ही..आवाज भी बहुत धीमी थी। कौन सी गोली लेना है, यह देख नहीं पा रही थी...और दुकान वाले मामाजी जोर से बोल रहे थे...जल्दी बोलो क्या चाहिए।

     मैंने एक बरनी की  ओर दूर से इशारा किया...वो वाली  दे दो। तभी  पीछे से किसीने मुझे  गोदी में उठा लिया और ऊंचा उठाता हुआ इशारे से बोला...अब बताओ क्या चाहिए  ?मैं थोड़ा डर गई..ये आदमी कौन है मुझे गोदी में क्यों उठाया ? मामाजी ने मेरे बताने पर गोलियां दे दी. मैंने हाथ पर रख कर मुठ्ठी बंद कर ली।.. मैं जैसे ही पैसा देने लगी,उन अंकल ने मेरा हाथ हटा दिया और खुद अपनी जेब से पैसा दे दिया ।.मैं कुछ पूछना  चाहती थी कि ऐसा क्यों किया ?पर उनके साथ खड़े एक बुजुर्ग  ने कहा...बेटा, ये अंकल बोल नहीं सकते..सुन भी नहीं सकते, इशारों से सब समझ जाते हैं ।मुझे डर भी लगा और आश्चर्य भी हुआ ..कि कोई ऐसा भी हो सकता है... जिंदगी में पहेली बार कोई गूंगा-बहरा देखा था...फिर मेरा अपना पैसा वैसा ही मुट्ठी में बंद किये  मैं दौड़ते हुए घर आ गई ।किसी को बताया नहीं ।

 दूसरे दिन जैसे ही शाम हुई..मैं चुपचाप पैसा लेकर फिर मामाजी की दुकान की  तरफ़  भागी। वहां फिर वे ही अंकल खड़े थे, दूसरे लोगों के साथ, कुछ इशारों में बात करते हुए। बहुत सफ़ेद रंग की शर्ट और सफ़ेद पेंट था उनका ।बाल सीधे ,बिना मांग के ,पीछे तक संवारे हुए । मुझे देख कर फिर  गूंगे अंकल ने गोदी में उठा लिया.।इशारे से पूछा ,क्या चाहिए?...इस बार मैंने चाकलेट की शीशी की  ओर उँगली  बतायी.।..उन ने ४..५ चाकलेट उठाकर मेरी फ्रॉक की जेब में रख दिए ।पैसा मैं दे ही नहीं पाई।  उन्होंने  जल्दी से  कोई सिक्का  निकालकर दुकानदार  को दे दिया । वे बहुत खुश थे।.मेरे उलझे घुंघराले बाल सहलाने लगे ।.फिर मैं गोदी से उतर कर ,जल्दी भाग कर घर आ गई।

           गूंगे अंकल किसी ऑफिस में काम करते थे। अकेले रहते थे।हमेशा ख़ूब सफ़ेद झक्क पोशाक पहिनते थे। एक दिन मैंने देखा,  कि वे सिगरेट पी रहे थे। फिर तो मैं रोज जाने लगी दुकान पर ।वे राह देखते रहते।  मुझे गोदी में उठाते, गोली ,चाकलेट दिलाते, प्यार करते और फिर मैं घर भाग आती। पर हाथ में पैसा मैं रोज ले जाती थी और फिर  वापिस  लेकर लौटती थी।

                यह क्रम  ६..७दिन ही चला होगा। मेरे 5 बरस बड़े भाई रघ्घू दादा ने ख्याल कर लिया कि मैं  रोज शाम को  मामाजी की दुकान  जाती हूँ । उस दिन  जब मैं  जाने लगी ,कड़क कर बोले.-.कहां जा रही है.?.मैंने बताया.-मामाजी की दुकान,  मीठी गोली लेने। और फिर मैं चली गई। मुझे पता नहीं ,कब वे मेरे पीछे पीछे आए..उन्होने देखा कि मैं गूंगे अंकल की गोदी मैं चढ कर   कुछ ले रही हूं ,कांच की बरनी  से ।जैसे ही मैं घर पहुंची,रघ्घू दादा जोर से  बोले। इतनी चॉकलेट ?कितने पैसे मेंआए? पैसा तो तेरे हाथ में ही है ?क्या चुरा कर लाई दुकान से? मैं रोने लगी. ।दादा ने सारे चॉकलेट छुड़ा लिए ।बोले, सच बता... नहीं तो मैं भाभी से बता कर मार पड़वांउगा। और  तू किसकी गोदी  में  चढी थी? कौन था वह  सफेद  कपडों  वाला? जानती है,  बच्चों  को उठा कर ले जाते हैं, अनजान  लोग ?

     दो दिन रुककर मैं फिर शाम को चुपके से घर से निकली.।दौडकर दुकान पहुंची ।जैसे मैं भी  उन अंकल से मिलने के लिए  बहुत  व्यग्र  थी.।उन ने फिर  मुझे  देखते  ही गोदी में उठा  लिया और थोड़ी देर मेरे बाल सहलाते रहे।जैसे पूछ रहे हों  कि 2 दिन क्यों नहीं आई। फिर शीशी से 8-10 लाल रंग की गोली निकाल कर मेरी जेब में रख दी  ।अब मैं जल्दी से घर भाग रही थी कि कोई देख न ले  ।.पीछे मुडकर देखा तो रघ्घू  दादा भी मेरे पीछे चले आ रहे थे ।.घर आते हीबोले..पहिले मुझे सारी गोलियां दे  ।और यह बता कि किसकी गोदी में चढ कर गोली खरीद रही थी ?और तेरे पास पैसे कहां से आए? मैंने रोते रोते सारी बात बता दी कि कौन मुझे रोज चॉकलेट दिलाता है।.  दादा ने अपनी दादागिरी दिखाते हुए कहा... ठहरो, मैं बड़े भैया से बता दूंगा। वर्ना मुझे सारी गोलियाँ  और पैसा भी दे दो। और सुनो ,अब कभी दुकान पर गई ,तो तेरी टांग  तोड़ दूंगा। मैंने सिसकते हुए कहा  ।अब कभी नहीं जाऊंगी.।फिर मैं कई माह  तक दुकान पर नहीं गई.।.और फिर  उन  अंकल को कभी नहीं देखा। अब इस बात को 75 साल हो गए...न  वे अंकल  अब इस दुनिया में होंगे। रघ्घू  दादा भी 4 साल पहले दुनिया से चले गए ।पर मुझे खुद नहीं मालूम कि मेरी यादों में वे  अंकल क्यों अभी तक जिंदा हैं? शायद कोई अनजान  कारण  होगा,किसी जन्म  का  कोई अनजाना  सा रिश्ता ।।।

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