यादों के झरोखे
-मिथिलेश खरे
यादों के झरोखे
*मिथिलेश खरे
मेरी बेटी की व्यस्त जिंदगी में ,
यादों की गुजरती गलियों में ,
ऐसा भी आयेगा एक दिन
मेरे जाने के बाद ....
जब मेरी पूजा की चौकी के
नीचे भरा वर्षों का खजाना ,
छोटी छोटी चीजों से भरा वह कचरा
हां कचरा ही कहती थी उसे वह
नहीं फेक पाएगी कभी भी----
निकाल कर देखा करेगी ,
जिल्द फटी रामायण ,
पहिले पन्ने पर रखी तस्वीरें
श्री मां और अरविंद की ,
आखिरी पन्ने पर दबा
पुराना पीला पड़ा लिफाफा,
और उसमें गुलाब की पंखुड़ियां !
मेरी दीक्षा के फूल,
सूखे ,मुरझाए ,पर पूरे जीवंत
उन्ही फूलों के स्पर्श में,
जीती रहूंगी मैं --पता है मुझे ,
मरने के बाद भी जीती रहूंगी
मैं जीती रहूंगी मैं ......
मेरे पूजा घर के तहखाने में ,
उसे मिल जाएंगे कभी
कुछ मनके रुद्राक्ष के ,
कुछ चमकीले पत्थर के,
सिंदूर की डिब्बी छोटी सी,
पुरानी राखियां ,लाल पीला कलावा ,
दो शंख और तुलसी की माला....
शायद निरर्थक होकर भी
अर्थवान हो उठेंगी,
वे सब चीजें ,क्योंकि
मां के नर्म से स्पर्श को
वह उनमें महसूस कर पायेगी !
नहीं भूल पाएगी कभी,
बात बात पर रूठना, मनाना
रोना और रुलाना ,गुस्सा और प्यार!
जन्मों के इसी जोड़ में गुंथी
जीती रहूंगी मैं ,मरने के बाद भी,
जीती रहूंगी मैं
पता है मुझे, पता है मुझे....
जीती रहूँगी मैं
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