प्रयाण की ओर
मिथिलेश
-मिथिलेश कुमारी
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आदर्शों के और वृहद् जाल में ,
कब तक बांधू पंख तुम्हारे?
मन जब मन से बातें करता,
शब्द बैठते कान लगाए,
मौन प्रतीक्षा जिस आगत की।
शायद वह आए ना आए,
शायद वह आए ना आए!!!
बाट जोहती मिटती आशा ,
जिसने आसमान थामा है ,
लो प्रयाण की घड़ी आ गई!
किसको कहां कहां जाना है ?
किसको कहां कहां जाना है
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