उमर की नाव
- मिथिलेश कुमारी
उमर की नांव
-मिथिलेश कुमारी
-----------------
अंकुर का संग
पीछे छूट गया ,
बढ चली उमर की बेल,
खुल गए निद्रा के द्वार,
सपना का जाल
मधुर टूट गया ------
बढ चली सागर में नाव
बचपन को यौवन
फिर लूट गया ...
चलना है अभिराम यहां
मत पंख समेटो ,
क्षणभर का विश्राम कहां
मत पंख समेटो.....
लहरों के सघन झकोरों से ,
गर डोल रही हिम्मत नौका
पतवार नाम की याद रखो
मत जाने दो स्वर्णिम मौका
मत जाने दो स्वर्णिम मौका
×××××××××××××××××××××××××
उम्र की बहती नौका को विश्राम कहां
जवाब देंहटाएंउसको तो बहते ही जाना है
बस बहते जाना है
मिल जाए अंत जहां .....
सुधा वर्मा
हटाएं