सुमन की महक
-मिथिलेश कुमारी
एक सुमन की महक
एक सुमन की महक,
समूचे उपवन को,
सुरभित कर जाती,
क्षण दो क्षण की बहक कभी,
जीवन की नौका को विचलाती।
कह दो मलयानिल से कोई,
कह दो मलयनिल से कोई,
श्वास श्वास आभार मानती
पल दो पल की दया दृष्टि को,
जन्मो का उपहार मानती।।
पंख लगा उड़ गए सपन जो,
आंख निरंतर बाट जोहती,
धरती आसमान की दूरी
किस डोरी से भला पाटती।।।
कह दो मलयानिल से.....
पवन भागती रही रात भर,
नक्षत्रों को नीँद न आई,
दीप ज्वाल मे सपन जल गए,
दीप ज्वाल मे सपन जल गए,
फिर भी सुधि उनकौ न आई,
फिर भी सुधि उनकौ न आई।।।
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