फूल की चाह
-मिथिलेश कुमारी
फूल की चाह
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ठीक है, माना कि मैंने,
शीश पर तेरे निरन्तर ,
चढ़ा करती, रोज ही हैं
पुष्पमालायें सुगंधित.......
किन्तु यह अधिकार माँगू ,
एक पल को चरण छू लूँ ,
धन्य होंगे भाग्य मेरे
और पावन शीश मेरा ........
पर न तेरी अर्चना में,
नाम हो मेरा कहीँ पर,
और यह अभ्यर्थना है,
मौन भी है, मुखर भी है .......
तुम न जानो , जग ना जाने,
किन्तु गिरकर बिखरने का,
तुम नही अधिकार छीनो
तुम नही अधिकार छीनो..
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