सपना तिरुपति मन्दिर का
-मिथिलेश कुमारी
सपना तिरुपति मंदिर का
उन दिनों मैं सागर के केंद्रीय विद्यालय में टीजीटी याने ट्रेंड ग्रेजुएट टीचर के पद पर थी। मैंने तभी एम.ए .में (पहला वर्ष )इतिहास विषय लेकर पास किया था। अच्छे अंक लाई थी और यूनिवर्सिटी में मेरा दूसरा स्थान मेरिट लिस्ट में था। मैंने अपनी पढ़ाई प्राइवेट रूप से की थी , दो बच्चे संभालते हुए और अपनी नौकरी केंद्रीय विद्यालय में करते हुए। मेरे पति भी उस समय उसी विद्यालय में, मेरे समकक्ष पद पर शिक्षक थे ।हम दोनों साथ-साथ, बच्चे , नौकरी और घर का काम संभाल रहे थे। साल खत्म हुआ और मेरी फाइनल एम.ए की परीक्षा हो गई। मुझे प्रथम श्रेणी और यूनिवर्सिटी में द्वितीय स्थान मिला, मेरिट में ।यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले जिस नियमित विद्यार्थी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया था , वह मुझ से कुल 3 अंक आगे था और (viva) मौखिक परीक्षा लेने वालों ने उसे मुझसे 25 अंक ज्यादा दिए थे ।जबकि मैंने वायवा में हर प्रश्न का सही उत्तर दिया था।
मेरी नौकरी ठीक ठाक चल रही थी ,तभी अचानक ऊपर के बड़े अधिकारी के दफ़्तर से नोटिस आ गया ।उसके हिसाब से मेरी नौकरी समाप्त कर दी गई थी क्योंकि मेरी नियुक्ति एड हॉक बेसिस याने अस्थाई तौर पर हुई थी।
बाद में पता चला कि मेरे ही साथ वाले शिक्षकों ने मेरे खिलाफ, लिखित शिकायत ऊपर के अधिकारियों को पहुंचाई थी ।क्योंकि मेरी नियुक्ति उनसे ऊपर के पद पर हो गई थी, जबकि मेरा अनुभव उनसे कम था ।
पर परमात्मा के नियम भी अजूबे हैं, जिनकी कठोरता में भी कल्याण छुपा होता है । दोबारा संभागीय स्तर पर चुनाव हुआ और मेरा चुनाव स्थाई रूप से हो गया ।मेरे साथ इंटरव्यू देने वाले में वे शिकायतकर्ता शिक्षक भी थे। इस बार भी उनका चयन नहीं हो पाया धा। वे मुझसे पीछे रह गए थे।यह ईश्वर का न्याय था और बिल्कुल संदेह से परे। एक वर्ष बाद फिर बडी पोस्ट के लिए विज्ञापन निकला,जो लेक्चरार के समकक्ष होता था । इस इंटरव्यू में इस बार अगर मैं सफल हो जाती थी, तो मेरा पद मेरे पति से भी ऊपर हो जाता था। यह मुझे और समाज को दोनों को मंजूर नहीं था । पर वैसा ही हुआ ।इस बार मेरा इंटरव्यू मुंबई में था ।इंटरव्यू के एक महीने बाद पत्र आया कि मैं चुन चली गई हूं, ऊंची पोस्ट के लिए ।स्नातकोत्तर शिक्षिका (पीजीटी )के रूप में ,मुंबई के एक बड़े केंद्रीय विद्यालय में मेरी पोस्टिंग हुई है। मुझे खुशी नहीं हुई ।बच्चे लेकर पति से दूर चले जाना, दुखद था मेरे लिए। यह तो इनकी उदारता थी जो इन्होंने मुंबई में मुझे बड़ी पोस्ट पर ज्वाइन करने के लिए अनुमति ही नहीं आदेश भी दिया ।और मैं तीनों बच्चों सहित मुंबई आ गई।
मुझे दोनों बातों का दुख था , इनसे अलग, अकेले रहने का और दूसरा, मेरा बड़ी पोस्ट पर होने का। मैं रोज भगवान से प्रार्थना करती, ये मेरे साथ आ जाएं और बराबरी की पोस्ट हो ।किसी महिला ने कहा -तिरुपति भगवान बहुत जाग्रत हैं।तो मेरी प्रार्थना में यह भी शामिल हो गया था कि यदि मेरे पति का प्रमोशन हो गया, तो मैं अवश्य तिरुपति के दर्शन करने जाउंगी ।कुछ दिनों बाद ही हमारे सज्जन प्राचार्य के प्रयास से इनका ट्रांसफर मेरे ही स्कूल में हो गया और अब हम दोनों बहुत खुश थे ।स्कूल के कामों में हम दोनों ने अपने आप को बहुत व्यस्त कर लिया।
बच्चे बड़े होते गए ।पूरे 9 साल बीत गए सब सुविधाएं थी।विद्यालय में अब हम सीनियर टीचर कहलाते थे ।और विद्यालय के कैंपस में ही हमारा घर था। मैं बिल्कुल ही भूल गयी कि कभी मैंने तिरुपति भगवान के सामने कोई मन्नत मानी थी। 9 साल बाद मेरे पति का प्रमोशन हुआ और अब ये मेरी बराबरी के पोस्ट पर आ गए थे ।इनका स्कूल बदल गया था
एक रात मैंने सपना देखा , मैं ऐसे स्थान पर गई हूं ,जिसे लोग देवस्थानम कह रहे हैं। बहुत से लोगों की भीड़ है ।और बहुत लोगों के सिर मुड़े हुए हैं और उनमें औरतें भी शामिल है जिनके बाल नहीं है। मैंने इस तरह मुंडी मुंडी औरतों को कभी नहीं देखा था। फिर सपने में देखा कि 50-55 की उम्र की महिला मेरे पास में बैठी हुई है ।वे कुछ अस्वस्थ है ।,अपने फोन पर कुछ बातें कर रही हैं । वह किसी विद्यालय के ऑफिस का दृश्य था ।जब उनकी, फोन पर बात खत्म हो गई तो वे मुझसे बोली कि अब तुम जा सकती हो, दर्शन के लिए ।मेरे साथ कोई और भी था ।हम दोनों उस महिला के प्रति बहुत आभार जता रहे थे।
उस दिन शाम को मैं अपनी सहकर्मियों के साथ, स्कूल कैंपस में , पीपल के झाड़ के किनारे बने चबूतरे पर बैठी थी ।मेरे साथिन दक्षिण भारतीय महिला थी वे।मेरी अच्छी दोस्त थी वे।मैंने उनसे बताया कि मैंने आज सपने में एक जगह देखी है ,जहां बहुत भीड है ।बहुत सारे मुंडे मुंडे लोग हैं वहां ।पता नहीं वह कौन सी जगह है ,और लोग उसे देवस्थानम -देवस्थानम कह रहे थे सपने में। मेरी सहकर्मी तुरंत बोली -देवस्थानम तो तिरुपति मंदिर को कहते हैं ।क्या आपने कभी मन्नत मांगी थी वहां जाने के लिए? मुझे सारा का सारा याद आ गया। 9 साल पहले मैंने भगवान से क्या प्रार्थना थी और अब यह प्रार्थना पूरी हो गई थी मेरी ।भगवान ने मेरी इच्छा पूरी कर दी थी। एक वर्ष होने को था और मैं यह बिल्कुल भूल गई कि मुझे तिरुपति जाना है।. भगवान ने सपने के माध्यम से मुझे याद दिलाया था।
मेरे लिए तिरुपति जाना बहुत मुश्किल था।मेरे पति इसे हंस कर टाल देते, मजाक में , कि मैंने कभी उनके लिए तिरुपति भगवान के दर्शन की मन्नत मानी थी। यह सोचकर मैं उनसे कभी नहीं कह सकी कि मुझे तिरुपति जाना है ।वे इस तरह की बातों पर विश्वास नहीं करते थे
इत्तफाक से , तभी मेरा प्रिंसिपल की पोस्ट के लिए इंटरव्यू लेटर आया। इंटरव्यू बेंगलुरु में था। जब पति ने कहा कि इंटरव्यू देने जाओ तो मैंने पहली शर्त रखी ,यदि तुम मुझे वहां से तिरुपति जाने दोगे ,तभी मैं इंटरव्यू देने के लिए जाऊंगी। उन्होंने मंजूर किया और मेरा रेलवे रिजर्वेशन करा दिया। मैं एक दूसरे टीचर के साथ इंटरव्यू देने के लिए , बेंगलुरु गई ।
इंटरव्यू के बाद ट्रेन से हम लोग तिरुपति पहुंचे। वापसी का टिकट उसी दिन का था और हमारे पास सिर्फ 3 घंटे बचे थे ।जब हम तिरुपति पहुचे और दर्शन करने के बारे में लोगों से पूछा तो उन्होंने कहा -यहां कई कई दिन लगते हैं दर्शन के लिए ।आपको इतनी जल्दी दर्शन कैसे हो सकते हैं तिरुपति भगवान के ?
हम लोग बहुत परेशान थे ।तभी मैं केंद्रीय विद्यालय की प्रिंसिपल श्रीमती शारदाम्मा से मिलने गई ।अद्भुत था वह वाकया भी। वे 50 -55 के बीच की ,अधेड उम्र की महिला थी। गर्दन में कुछ तकलीफ थी तो पट्टा बांधे हुई थी ।जब मैं ने आग्रह किया कि तिरुपति भगवान के दर्शन करके मुझे आज ही 2 घंटे बाद वापस जाना है, कैसे होगा ?तो वे बोली- रुको, हो जाएगा। फिर उन्होंने कई लोगों को फोन किए 15 मिनट तक। एक आदमी हम लोगों को मंदिर छोड़ने आया और वहां कई लोगों ने मिलकर हमें भीतर पहुंचाया ।
प्राचार्य महोदया की कृपा से हमें विशेष वीआईपी के लाइन में शामिल किया गया था।अलग-अलग लाइन में लगकर, 1 घंटे में हमें भगवान के दर्शन हो गए।अद्भुत था यह सब। पहली बार मैने तिरुपति भगवान के प्रभाव और महत्ता को जाना ।मेरे साथी शिक्षक भी बोले- आपकी आस्था भी कमाल की है ।एक घंटे में तिरुपति भगवान के दर्शन हो गये, जबकि कई कई दिन लगते हैं इसके लिए । फिर उसी दिन मुंबई की ट्रेन लेकर हम वापस आ गए ।वह अद्भुत सपना था तिरुपति मंदिर के दर्शन का। उसका इतना अजीब तरीके से पूरा होना मुझे हमेशा याद रहा ।ईश्वर के हजार हाथों में न जाने कितने मानवों के हाथ शामिल होते हैं ।तिरुपति की प्रिंसिपल शारदम्मा के हाथ मुझे सबसे शक्तिशाली लगे। अद्भुत था वह सपना और सपना दिखाने वाले का करिश्मा।
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