वह सपना - हितकारिणी स्कूल का
-मिथिलेश कुमारी
तब--------' मिसेज चटर्जी के साथ
और अब------'
जबलपुर में दीक्षितपुरा का हितकारिणी गर्ल्स स्कूल मेरे घर के पास था। उस में कक्षा 5 में मेरा एडमिशन हुआ था । तब स्कूल में यूनिफार्म नहीं होती थी। हम लोग मनमानी फ्रॉक, सलवार कुर्ता, कुछ भी पहन कर, पैरों में चप्पल डालकर ,भागते भागते स्कूल चले जाते थे। प्रिंसिपल मिसेज चटर्जी, बहुत सख्त महिला थी। प्रार्थना की घंटी बजते ही, स्कूल का चपरासी स्वामीदीन जल्दी से फाटक का ताला लगा देता था और लेट आने वालों की , प्रिंसिपल के सामने पेशी होती थी। 3 साल के बाद, अपने पारिवारिक कारणों से, मुझे यह स्कूल छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ा ।वह लड़कों का स्कूल था और वहां साइंस और गणित लेकर मैंने 11वीं याने मैट्रिक पास की। बोर्ड परीक्षा में सबसे ज्यादा अंक लाने के बावजूद भी मेरी आगे की पढ़ाई बंद हो गई । तभी किसी स्कूल में टीचर के रूप में मेरी नियुक्ति हो गई। उस समय मैं उम्र के 16 वर्ष पूरे कर चुकी थी। मैं अपने से दो-तीन वर्ष छोटी लड़कियों के लिए "खरे मैडम" बन कर नौकरी करने लगी और साथ ही प्राइवेट विद्यार्थी की तरह, इण्टरमीडिएट और बी,ए. की परीक्षाएं, जबलपुर यूनिवर्सिटी से पास की। बी ए. में मेरे विषय, अंग्रेजी साहित्य, इतिहास संस्कृत, और दूसरे अनिवार्य विषय थे । जैसे ही बी ए. का रिजल्ट निकला , बड़ी भाभी का आदेश था - अब यह हमारे साथ , जबलपुर में रहकर, नौकरी करेगी। मां तो किसी बात का विरोध करती ही नहीं थी। मैं भी खुश थी, जबलपुर में रहने से ।क्योंकि वहां मेरी बहुत सी सहेलियां थी , पुराने स्कूल की।
गर्मी की छुट्टियां थी। तीन चार जगह से इंटरव्यू कॉल आए और मेरा इंटरव्यू हो गया। फिर उसी हितकारिणी स्कूल से भी इंटरव्यू कॉल आया, मिडिल स्कूल टीचर का इंटरव्यू देने के लिए। पूरे 9 वर्ष बाद में स्कूल का फाटक देख रही थी। फ्रॉक पहन कर भागने वाली लड़की , अब साड़ी और जूड़ा में, स्कूल के आफिस के बाहर, इंटरव्यू देने वाले उम्मीदवारों की कतार में, बैठी थी । वही पुरानी प्रिंसिपल , मैनेजमेंट कमेटी के लोगों के साथ ऑफिस में बैठी हुई थी। जब मेरा नंबर आया तो मैं भीतर पहुंची और नमस्कार करके ,चुपचाप कुर्सी पर बैठ गई। बी,ए. करते-करते ,मेरा 4 वर्ष पढ़ाने का अनुभव भी हो गया था ।इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों में से किसी ने पूछा कि नवमी कक्षा तक तुम क्या-क्या विषय पढ़ा सकती हो ?
मेरा उत्तर था -छोटी क्लासमें साइंस भी पढ़ा सकती हूँ । एक सदस्य ने पूछा- आपका तो ग्रेजुएशन में भी गणित भी नहीं है, फिर आप गणित कैसे पढ़ाएंगी? मैंने कहा- आप पूछ लीजिए ,कक्षा ग्यारहवीं तक मैंने इतनी अच्छी तरह गणित पढ़ा है , कुछ भी नहीं भूली नहीं हूँ । और यह मेरा प्रिय विषय है। इसलिए मैं पढ़ा सकती हूं गणित, बड़ी क्लास में भी । फिर मुझसे गणित के कुछ फॉर्मूले पूछे गए ।मैं सही-सही बता पाई ।सभी सदस्य मेरे जवाबों से संतुष्ट थे। प्रिंसिपल जिनको बहुत सख्त महिला कहा जाता था , वे भी मेरी तरफ बड़ी प्रशंसा भरी नजरों से देख रही थी।
तब तक दो जगह से नियुक्ति पत्र आ गया था। वे दोनों स्कूल मेरे घर से बहुत दूर थे , शहर के दूसरे छोर पर। भाभी को मंजूर नहीं था इतनी दूर जाने देना। अगर आने जाने में इतना समय लगा ,तो घर में भतीजे को कैसे पढ़ाओगी? और घर का काम तो बिल्कुल भी नहीं कर पाओगी । भतीजे को पढ़ाने के लिए मुझे खासतौर पर जबलपुर में रखा गया था। भतीजा ग्यारहवी बोर्ड की परीक्षा दे रहा था और अंग्रेजी और गणित में कमज़ोर था।
10 दिन के बाद हितकारिणी स्कूल में मिडिल कक्षाओं को पढ़ाने के लिए , शिक्षिका के रूप में , मेरा नियुक्ति पत्र आ गया। दूसरे दिन मैंने स्कूल में ड्यूटी जॉइन कर ली। बड़ा स्कूल था, लड़कियों का। दो शिफ्ट में लगता था। बहुत सी शिक्षिकाएं थी ,अधेड़ उम्र की, कुंवारी ,ब्याही परिवार वाली, बिना परिवार वाली। तीन चार तो वे टीचर भी अभी तक थी, जिन्होंने मुझे पढ़ाया था पांचवी कक्षा में । वाइस प्रिंसिपल आई और एक बड़ा सा रजिस्टर,टाइम-टेबिल और बहुत सी हिदायतें देकर चली गई । मुझसे कह गई, कि अब कक्षा में जाओ । थोड़ा डर भी था, थोड़ी उत्सुकता भी फिर मैं हर क्लास में, टाइम टेबल के हिसाब से चली गई। हर पीरियड में लड़कियों से बातें करती रही । मैं स्कूल में , उम्र और डीलडोल में सबसे छोटी थी । ठीक से साड़ी भी नहीं पहन सकती थी। न ही मुझे स्टाइल वाला जुड़ा बांधना आता था। जूड़ा बनाना अनिवार्य था स्कूल में ।
स्कूल खत्म हुआ और घर आते आते जरा देर हो गई। जोर की भूख भी लगी थी ।घर आकर खाना खाते-खाते भाभी ने पूछा -इतनी देर कैसे हो गई ?स्कूल तो 1:00 बजे छूट गया था ,तो वह 1:15 बजे तक घर आ जाना चाहिए था। यह आधा घंटा लेट कैसे हो गई ? मेरे पास कोई ऐसा उत्तर नहीं था जो उनको संतुष्ट कर सके । फिर वे ऊंची आवाज में कहने लगी । कि कल से ध्यान रखना, लड़की जात हो ,सीधे स्कूल और घर ।बीच में किसी टीचर है सहेली के साथ रुकने की जरूरत नहीं है।
दुखी हो गई । यह पहला ही दिन था , मेरी नौकरी का, और मेरा ऐसा स्वागत? मां की याद आई ।पर अब तो चुप ही रहना है । बड़ी हो गई हूं भाभी का कहना मान कर ही इस घर में रह सकूंगी। दूसरे दिन फिर सुबह तैयार होकर स्कूल गई। जो टाइम टेबल मुझे मिला था, उसी के हिसाब से कक्षाएं पढ़ाई । क्लास टीचर भी, आठवीं क्लास की बन गई थी। बच्चों से परिचय करती रही। रजिस्टर पूरा किया । अंतिम पीरियड में, जल्दी से रजिस्टर जमा करने की लाइन में खड़ी हो गई ।
जाते समय सब शिक्षिकाओं को स्कूल के रजिस्टर में दस्तखत करने होते थे और समय लिखना होता था। यह लाइन बहुत लंबी होती थी ।टीचर्स मुझसे कहने लगी, तुम सबसे छोटी हो ।पीछे खड़ी रहो लाइन में ।तुमको इतनी जल्दी क्या है ?कौन से तुम्हारे बच्चे रो रहे हैं घर में? अब मैं उन्हें कैसे बताती कि मुझे जल्दी क्यों है? जल्दी-जल्दी कदम बढ़ा कर मैं, जब घर पहुंची तो भाभी ने घड़ी देखी और कहा -अब घर पहुंची हो ? घड़ी देखो, 20 मिनट लेट हो। मुझे रोना आ गया । किसी तरह दो रोटी निगलकर , ढेर सारा पानी पी लिया और मन को शांत करने के लिए, रामायण का अयोध्या कांड का पाठ करने बैठ गई । 2 घंटे 45 मिनट में पाठ खत्म हुआ और उसके बाद मैं सो गई ।
फिर सपना आया जो मैं कभी नहीं भूली। मैंने देखा- मैं स्कूल में हूॅ ।स्कूल खत्म होने को है और मैं रजिस्टर रखने जा रही हूं । फिर रजिस्टर रखकर वापस प्रिंसिपल मिसेज चटर्जी के ऑफिस में घुस गई । जैसे ही मैं अंदर पहुंची, प्रिंसिपल मैडम चिल्ला रही थी किसी पर। एक गोरी सी महिला उनसे कुछ बोल रही थी। फिर उन्होंने एक लिफाफा मेरी और बढ़ाकर कहा- मिस खरे, यह तुम्हारा प्रमोशन लेटर है ।अब तुम स्कूल की बड़ी क्लास पढ़ाओगी और तुम्हारी जगह ये मेडम छोटी क्लास पढ़ायेगी। बस, इसके बाद मेरी नींद खुल गई। हड़बड़ा कर उठी ।यह कैसा सपना था ? ऐसे कैसे मुझे 1 दिन में प्रमोशन मिल जाएगा? और मिसेज चटर्जी तो बहुत सख्त प्रिंसिपल है ।उन्हें सभी टीचर, "लटकती हुई तलवार " कहा करती थी।
सुबह फिर जब मैं स्कूल गई तो पूरे दिन पढ़ाने के बाद , जब आखिरी पीरियड चल रहा था, तभी चपरासी बुलाने आया । बड़ी बाई ने ऑफिस में अभी बुलाया है, रजिस्टर लेकर। बिलकुल अर्जेन्ट है। वह फीस जमा करने का दिन था । मुझे लगा, मुझसे कोई बड़ी गलती हो गई है, फीस जमा करते समय । तो अब मेरी पेशी हो रही है,प्रिंसिपल के ऑफिस में। दूसरी टीचर्स ने कहा -जाओ, जाओ संभल कर जाना । प्रसाद ले आओ ।आज तो शामत आ गयी तुम्हारी । तुम्हें अभी स्कूल के तौर तरीके कुछ पता नहीं है । कुछ मुझ पर तरस भी खाने लगी । पता नहीं , क्या बीतेगी बेचारी पर ?प्रिंसिपल का गुस्सा तो भयंकर है । रजिस्टर लेकर मैं ऑफिस में पहुंची। वहां मिसेज वैद्य और एक फैशनेबल पंजाबी महिला पहिले से ही मौजूद थी।
मुझे देखकर प्रिंसिपल ने एक लिफाफा देते हुये कहा- तुम्हारा प्रमोशन हो गया है ।अब तुम हाई स्कूल की बड़ी क्लास पढ़ाओगी। और इसके पहले कि मैं कुछ समझ पाती, उन्होंने बहुत कड़क आवाज में मिसेज वैद्य से कहा - मुझे आपकी कोई बात नहीं सुनना है । आप अपना रजिस्टर और टाइम टेबल मिस खरे को दे दीजिए। ये आज से कक्षा ग्यारहवीं की क्लास टीचर होगी और आप इनका छोटी क्लास का रजिस्टर और टाइम टेबल ले लीजिए । आपको डिमोट किया जाता है। वापस आप छोटी कक्षा में पढ़ाइये।आप प्रमोशन के लायक ही नहीं है । यह बिल्कुल वही दृश्य था जो 1 दिन पहले मैंने सपने में देखा था। वही ऑफिस वैसा ही लिफाफा और प्रिंसिपल का कहना कि आज से तुम्हारा प्रमोशन हो गया है। अद्भुत लगा मुझे यह सब । कौन मुझे यह सपना दिखा रहा था परमात्मा को धन्यवाद देते हुए मैं ऑफिस के बाहर आ गई। रजिस्टर और टाइम टेबल की अदला- बदली में जरा समय लगा। फिर मैं घर के लिए जल्दी भागी। आज तो 1 घंटे लेट हो गई थी। सोच रही थी, भाभी पता नहीं क्या-क्या सुनाएंगी मुझे आज ।घर पहुंच कर , कपड़े बदलने के पहले ही मैंने भाभी से कहा -भाभी, आज मुझे प्रिंसिपल ने प्रमोशन दे दिया है ।अब मैं बड़ी क्लास पढाऊंगी और मेरी जगह कोई दूसरी टीचर छोटी क्लास पढ़ायेगी।अब मेरी तनख्वाह भी ज्यादा होगी और पद भी । ....
भाभी ने कभी सोचा नहीं था कि ऐसा होगा। बोली- चलो अच्छा हुआ, खाना खा लो। कोई बात नहीं देर हो गई तो। खाना खाते खाते मैं सोच रही थी कि भाभी से बताऊं। यह सब तो मैंने एक दिन पहले ही सपने में देख लिया था। पर फिर सोचा ,अगर कल ही सपने की बात बता देती तो भाभी जरूर कहती -मुश्किल से तो नौकरी लगी है ,इस जमाने में तो प्राइमरी में भी नौकरी लग जाए तो बड़ी गनीमत है और ये हाई स्कूल की क्लास पढ़ाने का सपना देखने लगी! ट्रेनिंग भी नहीं की है B.Ed की । पर मुझे मन में बहुत खुशी थी कि भगवान ने मुझे सपना दिखाया और सपने का दृश्य साक्षात कर दिया। कभी-कभी सपने भी सच हो जाते हैं ।
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ईश्वर की महिमा अपरंपार पर तुम्हारे सपने ? एकदम जीवंत ऐसे शुभ सपने रोज दिखें तुम्हें ।
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