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उसे मत बताना

 उसे मत बताना

           -मिथिलेश कुमारी

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प्रिय  शशि, 

      मुझे पता है  तुमने हर बात मुझे बताई है ,सही या गलत। कोई क्या सोचेगा, इसे पढ़कर? ऐसा  तुमने कभी सोचा ही नहीं। फिर वह बात क्यों छुपाई तुमने मुझसे? मुझे याद है , तुम्हारी शादी के बाद, जब पहला पत्र तुमने मुझे लिखा था । 1963 की बात होगी, तुमने मिश्रा जी, याने अपने पति के बारे में लिखा था. "I have got a paradise "  मैं खुश थी बहुत ,चलो देखने में तो तुम्हारे पति मिश्रा जी अच्छे थे, दिल के भी बहुत अच्छे। मुझे उन दिनो में लगा था , अब तुम धीरे-धीरे मुझे भूल जाओगी। जैसा कि अक्सर होता है शादी के बाद । शादी, पति ,बच्चे और घर, बस यही संसार  बन जाता है । पर तुम फिर भी मुझे लगातार पत्र लिखती रही । मेरी शादी पर तुम नहीं आ पाई थी । बाबूजी के हाथों तुमने तोहफा भेज दिया था। तुम्हारी पहली बेटी पैदा हुई थी उस समय××××××××

        फिर तुम्हारी चिट्ठियों में उन सारी बातों का जिक्र होता था, समस्याए , जो अक्सर शादी के बाद ससुराल में परिवार वालों के कारण होती है। तुमने लिखा था - मिश्रा जी की सौतेली माँ है । और उनके कई भाई-बहन हैं। सब परेशान करते रहते  हैं । मिश्रा जी तुम्हें नौकरी नहीं करने देना चाहते। घर का काम कौन करेगा और बच्चे कौन संभालेगा  ? हर हफ्ते 15 दिन में तुम्हारा पत्र आ जाता था।  पर मिश्रा जी की शिकायत तुमने कभी नहीं की । पर एक बात शशि, मैंने भी बहुत समय तक तुमसे छुपाई थी ।××××××

उस समय मेरी शादी को 2 साल हुये थे।सरला दीदी के जेठ मेरे घर आए थे जो रतलाम में प्रोफेसर थे । अपने काम के सिलसिले में आए थे वे। तभी मुझसे मिलने, मेरे घर भी आए । वे मिश्रा जी को जानते थे । जब मैंने उन्हे  बताया,  कि मिश्रा जी मेरी सहेली के पति है और हम दोनों सहेलियां, एक दूसरे को हर हफ्ते पत्र लिखते हैं। तो वह कुछ कहते कहते रुक गए ।फिर धीरे से बोले   -

'शादी के पहले कुछ पता नहीं लगा , तुम्हारी सहेली के घर वालों को ? मिश्रा जी तो कई सालों से, एक महाराष्टियन  लड़की से जुड़े हैं। दोनों शादी करने वाले थे। पर कर नहीं पाए । वे  अभी भी हमारे शहर में आते हैं और होटल में उसी लड़की के साथ रुकते हैं।" मैं विश्वास भी नहीं कर पाई कि यह सच कैसे हो सकता है? जब तक तुम्हारे 2 बच्चे हो चुके थे ।और तुम्हें अभी तक पता कैसे नहीं लगा यह सब? शायद तुम्हें मालूम था उस गलत संबंध के बारे में। तुम मुझे बताना नहीं चाहती थी। इसलिए कि मैं उस बात को सुनकर बहुत दुखी हो जाऊंगी। तुम मुझे कभी भी , किसी बात के लिए दुखी नहीं करना चाहती थी। इसलिए वह बात तुम मुझसे छुपा गई  या शायद तुम मिश्राजी को इतना ज्यादा प्यार करती थी , उनका सम्मान करती थी , उनको किसी और की नजरों में गिरता हुआ नहीं देख सकती थी। कारण जो भी रहा  हो , मेरे मन को यह सब सहन नहीं हो पा रहा था। एक बात और भी मेरे मन में  आई कि शायद तुम बिल्कुल अनजान हो उनके अतीत के बारे में ।इसलिए आश्वस्त  हो।××

लेकिन अभी भी वह पुराना संबंध चल रहा है और पूरी गहराई से । और तुम इन सब से अनजान हो। यह बात मुझे खटक रही थी । फिर उसके बाद मैंने जो पत्र लिखा, उसमें सुनी हुई दुखदाई जानकारी के बारे में भी लिखा था। पर पता नहीं क्या  सोचकर वह पत्र मैंने तुम्हें भेजा नहीं। मैं कैसे तुम्हें दुखी कर सकती थी ।शायद तुम बिल्कुल अनजान थी ,उनके इस तरह के संबंधों से। और यह अच्छा भी था , कि तुम अनजान ही रहो । यदि तुम्हें पता भी लग जाता , तो तुम्हारा साथ कोई नहीं देता। पुरुषों  को तो कोई रोक नहीं सकता , तुमने एक बार कहा था - बहुत जिद्दी है  मेरे पति । मैं हंसी थी  तुम्हारी बात पर । तुम तो  अपने को बहुत बहादुर कहती थी। अब अपने पति से कैसे  दबकर रहती हो ? तो कुल मिलाकर, हम दोनों ही , यह बात एक दूसरे से छिपा गए थे कि मिश्रा जी के संबंध में हम दोनों को ही जानकारी थी ।हम दोनों के अपने-अपने अलग कारण थे , अपनी  अपनी  समझ थी  कि हम एक दूसरे को दुखी नहीं कर सकते थे,  इस कड़वी जानकारी को देकर।

: इसके बाद मैं  मुंबई आ गई, नौकरी में ट्रांसफर होकर। तुम्हारे पति के कई जगह ट्रांसफर हुए । हम दोनों के बच्चे बड़े हो रहे थे । हम पत्र लिखते रहे एक दूसरे को लगातार, रोजमर्रा की बातों को लेकर। इस बीच लंबे समय तक मिल भी नहीं पाए । फिर साल पर साल गुजरते गए। मैं स्कूल के कामों में बहुत व्यस्त थी और तुम घर के कामों में । फिर 13 वर्ष हो चुके थे तुम्हारी शादी को । तुम्हारी  चिट्ठियों में एक खीज सी झलकती थी जीवन के प्रति। मैं तो अपने दुख दर्द लिख देती थी और हल्की हो जाती थी । और तुम ?गंभीर समस्याओं को सुलझाते हुए ,जैसे तुम्हारी तेज बुद्धि को जंग सा लग गया था। 

यह नियति होती है स्त्रियों की, जिसे मानना अपरिहार्य होता है । तुमने एक बार लिखा  था, ,"मिश्रा जी अक्सर बीमार हो जाते हैं। उन्हें पेट की तकलीफ हो जाती है।"                                   

             -धीरे धीरे तुम्हारे पत्रों  के बीच का अंतर बढ़ने लगा  था। पता लगा कि छुट्टी लेकर इंदौर में मिश्रा जी का इलाज करा रहे हो तुम लोग ।दो ऑपरेशन हो चुके

मर्ज ठीक से पकड़ में नहीं आ रहा है डॉक्टरों की। तुम्हारी आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है । सौतेली मां के साथ साथ , तुम्हारे पिता यानी ससुर जी भी सौतेले हो गए हैं । 3 साल इलाज चला और एक दिन मुझे पोस्टकार्ड मिला , जिसका कोना फटा हुआ था। समाचार था कि मिश्रा जी का अंतकाल हो गया है ।उनकी तेरहवीं अगले हफ्ते है । बहुत अप्रत्याशित और बहुत दुखद था यह समाचार । अब मेरी  शशि बिल्कुल अकेली हो गई। तुम्हारी बड़ी बच्ची तब 15 साल की थी और 2 लडके  बच्चे 10 और 12 साल के  थे। कितना कष्टदायक था यह  कि मैं शशि की शादी के बाद, उस से पहली बार मिल रही थी ,उसके पति की तेरहवीं पर  ! उफ , कितना भयानक था वह सब ।उसकी सफेद साड़ी, सूना माथा,  उसकी चूड़ियां तोड़ना और उसकी सास का यह कहना कि  जब वह नहा कर बाहर निकलेगी, तो कोई उसका मुंह नहीं देखेगा। क्योंकि विधवा का मुंह देखना अशुभ होता है। 

मेरा मन दहल गया था, वह विधवा शब्द सुनकर। कि कोई मेरी शशि के लिए यह शब्द भी इस्तेमाल करें, यह मेरे लिए असहनीय था ।मैं 3 दिन उसके उसके साथ रही। मैं 1 मिनट को भी उसका साथ नहीं छोड़ती थी। ××××

: सारी नई पुरानी गाथाएं फिर से उभरी। 16 वर्षों के अंतराल  के बाद  मिले थे हम । और उस भारी दुख के समय भी, वह मेरे खाने पीने और सुख सुविधाओं के बारे में हिदायत देती रहती थी । पति की  तेरहवीं  के 1 दिन पहले ,उसने सरकारी स्कूल जाकर , टीचर के रूप में अपने नियुक्ति पत्र पर  हस्ताक्षर किए ।थोड़ी देर के लिए स्कूल भी गई क्योंकि उसे ड्यूटी ज्वाइन करना थी उस दिन । 40 की उम्र पार कर रही थी उस दिन । वरना उसे सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य समझा जाता। ×××××

   

लोग ,पड़ोसी, रिश्तेदार सब रस्म निभा कर चले गए। दूसरे दिन सुबह मुझे मुंबई वापस आना था। हम दोनों रात को 1:00 बजे तक जागते रहे ।फिर मेरा मन नहीं माना तो मैंने  उस से  धीरे  से पूछा - शशि, मिश्रा जी के बारे में कोई ऐसी बात है, जो तुमने मुझसे छुपाई ? वह फफक फफक कर रोने लगी ।बोली "हां मिथिलेश, मुझे पता है  , मिश्रा जी का संबंध किसी दूसरी महिला से था। वे दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे। शादी के पहले कई साल साथ रहे थे ।पर उस लड़की की मां ने शादी नहीं करने दी। तब मिश्रा जी ने दूसरी पढ़ी लिखी लड़की से शादी कर के , जैसे उसकी मां को जवाब दिया था । और इस तरह जिद में मुझसे शादी की। फिर बाद में भी वह अपने पुराने संबंध, उस महिला के साथ कायम रख पाए उसी तरह क्योंकि मैंने कोई एतराज नहीं किया। मैं हर हाल में उन्हें खुश देखना चाहती थी।" जब मैंने पूछा कि इतनी बड़ी बात मुझसे क्यों छुपाई ?

उसने कहा "कि मैं बहुत प्यार करती हूं तुम्हें , मैं तुम्हें कैसे दुखी कर सकती थी वह बात बता कर इसलिए मैंने तुम्हें कभी उस महिला के बारे में नहीं लिखा। अब वे दुनिया से चले गए। जहां भी हो ,खुश रहें ,सुखी रहें, शांति से रहे ।" इतना कहकर वह फूट-फूट कर रो पड़ी, मेरे कंधे पर सिर रखकर ।बोली "मैं क्यों बच गई मिथलेश , यह सब भार झेलने के लिए ,घर गृहस्थी का ,जिंदगी का ?" फिर वह मेरे ऊपर हाथ रख कर सो गई, धीरे-धीरे ।+×××

मुझे नींद नहीं आ रही थी। 2 घंटे बाद  हम दोनों उठ गए ।अबकी बारी मेरी थी हल्का होने की। मुझे भी हल्का होना था, कुछ कह कर । उसके गले में हाथ डाल कर , मैंने धीरे से कहा ,"शशि, यह सब मुझे बहुत पहले ही मालूम हो गया था ।सरला दीदी के प्रोफेसर जेठ ने 15 साल पहले मुझे यह सब बताया था। पर मैं यह बात तुम से छुपा गई थी । यदि तुम अनजान हो इस बात से , इन संबंधों से तो अच्छा ही है। मैं तुम्हें दुखी नहीं करना चाहती थी किसी भी कीमत पर।"

और आज मुझे पता लगा  कि हम दोनों को ही वह कड़वा सच मालूम था। हम दोनों  ही  उस कड़वाहट को चुपचाप पीते रहे  और सोचते रहे कि उसे मत बताना। कोई दूसरा मेरे कारण क्यों दुखी हो? मैं तुम्हें दुखी  नही  देख सकती थी। फिर सुबह, हम एक दूसरे से गले मिलकर, हल्के दिल से विदा हो गए । अब नहीं है शशि, दुनिया से चली गई । फिर भी  यह पत्र लिख रही हूं । मुझे पता है  , वह फिर मिलेगी मुझे , कहीं ना कहीं, कभी ना कभी। अलविदा नहीं कह पायेगी मुझसे .... ×××

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