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दो सहेलियां

 दो सहेलियां

          - मिथिलेश कुमारी

     

    

                      दो सहेलियां

प्रिय  शशि, 

           अब यह  पितृपक्ष आ गया। तुम पितरों में शामिल हो। और कितना अजीब है, अजीब है ना ? पर मैं कैसे स्वीकार करूं कि  तुम अब हो  ही नहीं। तुम तो हर समय बोलती रहती हो, मुझसे। खाने के समय बोलती हो  "क्या रे मिथलेश , इतना कम क्यों खाती है? यह कोई खाना  है ? देख ना , तेरे लिए बाटी चूरमा के लड्डू बनाये  और तूने खाये भी नहीं "। अब खाने की बात चली, तो बहुत पुरानी बात याद आ गई। हम लोग सिहोरा में थे। आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे। तुम्हारे अम्मा- बाबूजी , एक रात घर पर नहीं थे। तुम्हारे छोटे भाई मुन्ना को डॉक्टर को दिखाने के लिए ,जबलपुर गए थे ।इसके पहले मेरे घर से इजाजत मिल गई थी कि एक रात मैं  तुम्हारे  घर  रहूगी।  क्योंकि तुम अकेली हो रात में। हम दोनों की उम्र 13 वर्ष की थी। तब हम कितने खुश  थे कि एक रात  हम अकेले रहेंगे। बिल्कुल अकेले। स्कूल से छुट्टी होने पर , बस्ता लेकर , सीधे तुम्हारे घर आ गई थी। भूख लगी थी जोर से । मुझे तो खाना बनाना कुछ आता नहीं था । तुमने धनिया पत्ती और जीरा डालकर बहुत अच्छे परांठे बनाए थे ।उसका स्वाद अभी तक याद है।×××××

      फिर तुमने रेडियो चालू किया। मेरे घर पर तब तक   रेडियो नहीं था । तुम्हारे  रेडियो में गाना बज रहा था ,,,सितमगर   ओ सितमगर , तेरे लिए , मैंने क्या-क्या न पापड़ बेले sss। तुमने बताया था, यह अमीरबाई कर्नाटकी की आवाज है । फिर तुमने   सिर  हिला हिला कर , पूरे  कव्वालों के अंदाज में, मुझे गा गा कर सुनाया  था ।मैंने पूछा  -यह सितमगर क्या होता है ? तब तुम ने शरारत  भरे अंदाज में, बड़ी बड़ी आंखों से , मेरी तरफ देख कर कहा था - वही , जो तुम्हें तंग करेगा ।। तब हम दोनों खूब हंसी  थे और एक मधुर की कल्पना करते रहे  कि आगे भी हमारी जिंदगी में कोई  सितमगर आएगा।... सितमगर आएगा।।×××××××

           उस रात  दो बजे    तक  हम बातें करते  रहे। सोए नहीं । तभी बाहर के गेट पर ,कुछ आवाज  आई । हम बहुत डर गए कि कहीं कोई, चोर बदमाश तो नहीं आ गया  ? तुमने बहादुर की तरह , मुझे बोला -कि चलो बाहर   सांकल  खोलकर देखते हैं।

 इतनी रात को  कौन आ सकता है ?पर मैंने कहा-नहीं , अम्मा  बोल कर गई थी । तुम लोग अकेली हो। रात दरवाजा मत खोलना ,चाहे कोई भी बुलाए। फिर हम दोनों सो गए। सुबह तक अम्मा- बाबू जी वापस आ गए थे । पर उस रात कोई फाटक पर आया जरूर  था। शिकायत और सुझाव वाला , लेटर बॉक्स  नुमा डिब्बा , कोई निकाल कर ले गया था।

: फिर जब हम 11वीं में पहुंचे, तो तुम्हारे पिताजी का ट्रांसफर कटनी हो गया। तुम चली भी गई थी, अपने परिवार के साथ ।और मैं पागल की तरह हो गई थी। सारे लड़कों के बीच में अकेली लड़की थी । पर एक महीने बाद तुम वापस आ गई। 4 किलोमीटर दूर ,अपने चाचा के घर रहने लगी थी। स्कूल साइकिल से आती थी। तुम वापस क्यों आई ,कैसे आई ,यह एक चमत्कार था ।मेरी प्रार्थना तुम्हें वापस ले आई ।इसके बारे में फिर बताऊंगी। ××××

हां ,अब जबलपुर वाले तुम्हारे घर की याद आ रही है । बड़ा घर  था  तुम्हारा। उसमें एक बड़ा कच्चा आंगन था। आंगन में नीम ,अमरूद और हरसिंगार के पेड़ लगे थे। क्यारियाँ  थी , जिनमें गुलाब, गैंदा और मोगरा के फूल लगे होते थे। तब हमारे इंटरमीडिएट के परीक्षा के दिन थे ।हमारा अंग्रेजी विषय का पेपर था। उस रात मैं  भाभी से अनुमति लेकर तुम्हारे साथ पढ़ने के लिए आई ।×××××

: अच्छी तरह याद है, मुझे वह चांदनी रात। हम दोनों खाट बिछाकर आंगन में सोए थे । हम लोग मैथ्यू अर्नाल्ड की लाइट ऑफ एशिया बुक में से जो कविता पढ़ रहे थे, उसका नाम था- renunciation... बुद्ध  तब राजकुमार सिद्धार्थ  थे । और हम उनके महलों  की चकाचौंध  देख रहे थे ।

रत्न जटित दीपको  और सुंदर रेशमी पर्दों के साथ, नवजात शिशु पर हाथ रखकर सोई हुई यशोधरा को, सिद्धार्थ की  डबडबाई आंखों से देख रहे थे। यशोधरा की व्यथा को हमने कितनी मासूमियत से महसूस किया था। 

 आधी रात तक हम सोए नहीं थे ।यह सोच कर कि बुद्ध ने ऐसा क्यों किया? क्या पत्नी की अस्मिता का कोई अर्थ नहीं होता  पुरुष की नजरों में ? बाद में हमारी जिंदगी  ने  इस सच को बहुत अच्छी तरह समझा दिया था, हम दोनों को।××××

            शशि,  आज तुम होती ना , तो  तुम्हारे मोबाइल पर ढेर सी बातें लिखती। कि किसने क्या कहा और कैसा कैसा लगा। और आज अपनी कल्पना में तुमको भी मुस्कुराता हुआ देख लेती हूं। जो तुम्हारे मूक समर्थन का प्रतीक है। 

××फिर एक बात याद आ गई। हम दोनों ने ग्रेजुएशन कर लिया था तब । तुमने कॉलेज से गणित और फिजिक्स के लेकर, बीएससी किया था और मैंने प्राइवेट आर्ट्स के विषय लेकर बीए। हम दोनों जबलपुर के अलग-अलग स्कूलों में , टीचर बन गए थे। दोनों ही हाई स्कूल की बड़ी क्लास पढ़ा रहे थे । भाभी की अनुमति लेकर ,कभी-कभी मैं तुमसे मिलने आ जाती थी। बीच के रास्ते को तो करीब-करीब  दौड़  कर ही पार करती थी। ताकि जल्दी तुम्हारे घर पहुंच जाऊं। उन दिनों गीतकार नीरज बहुत चर्चा में थे।

   मेरे साथ सरोज चौहान हिंदी की टीचर थी। उसकी बताई बात, मैं तुम्हें मजे लेकर सुना रही थी। सरोज चौहान ने बताया था - कैसे नीरज जी उनके पड़ोस में किसी शादी में शामिल होने आए थे । वहां एक खूबसूरत लड़की को बार-बार घूर रहे थे । लड़की अपनी नाराजगी जाहिर कर रही थी । तभी लोगों ने नीरज जी से कविता सुनाने का आग्रह किया ।और नीरज जी सुनाने लगे ।  "किसे सुनाता व्यथा बावले, रूप के दिल नहीं होता " । फिर हम दोनों इस बात पर बहुत  हंसे थे। मेरे कहने पर तुम नीरज जी का गाना सुना रही थी।  " कारवां गुजर गया गुबार  देखते  रहे  "। मैं तुम्हें बता रही थी कि" नई उमर की नई फसल "फिल्म  में  यह नीरज जी का नया गाना  है । अब नीरज जी फिल्मों के लिए लिख रहे  है। फिर हमने लंबी सांस भरी। काश !हम लोगों  को भी यह फिल्म देखने मिलती  ! तभी बाबूजी अचानक कमरे में आ गए।

हम दोनों चुप हो गए जैसे कोई अनर्गल बात कह दी हो। बाबू जी क्या सोचेंगे ? ये लड़कियां पूरे टाइम फिल्मों की बात करती रहती है। अब जिंदगी  के इस मोड़ पर , जब 79 साल पूरे होने को आए हैं, सारी की सारी यादें, वैसी की वैसी ताजा है। अब तुम भी पूर्वजों में शामिल हो। 10 साल होने को आए । पता है तुम्हें कुछ ,इन 10 सालों में 1 दिन भी ऐसा नही गया  जब मैंने तुझे याद ना किया हो,  जब तुमसे कुछ कहा ना हो, । तुम्हारी प्यारी सी आवाज में वह गाना भी मुझे सुनाई पड़ता है।  "ज़िंदगी ख्वाब है ख्वाब में झूठ क्या ? और भला सच है क्या" ? जिंदगी एक ख्वाब है या  ख्वाब   ही  अब जिंदगी की संजीवनी है । पर यह ख्वाब भी एक दिन टूटेगा फिर तुम मुझे मिल जाओगी ,जिंदगी की तरह।।।।।।।।×

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टिप्पणियाँ

  1. तुम कितना " सजीव " लिखती हो डियर ! हर शब्द एक " शब्दचित्र " बन कर आंखों के आगे नाच रहा है । बुद्ध का Renunciation पढ़ा हमने भी था। और यही कुछ अनुभव भी किया था पर इतने वर्षों बाद - वैसे का वैसा काग़ज़ पर उतार दिया ! शशि के साथ बीते तुम्हारे लम्हों ने हमें भी वहीं पंहुचा दिया ।

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    उत्तर
    1. थैंक्स सुधा,वो बातें,वो BA की परीक्षा के दिन,भाभी की बन्दिश और मेरी शशि से मिलने की छटपटाहट,सारा का सारा याद है।शशि को गये 10साल हो गये।

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