मोबाइल की उधारी (एक कहानी)
- मिथिलेश कुमारी
सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद समय काटने के लिए मुझे काम करना जरूरी था। इसलिए मैं बहुत सी शिक्षण संस्थाओं से जुड़ गया बतौर निर्देशक और सलाहकार। मुझे बहुत से विद्यालयों में मेरा मनपसंद काम मिल गया। नए विद्यालयों को स्थापित करना, उनकी बेसिक जरूरतों के लिए आवश्यक सामग्री जुटाना , प्राचार्य और शिक्षकों की नियुक्ति में इंटरव्यू कमेटी में मुखिया बनना , यह सब अब मेरी दिनचर्या में शामिल थे । मेरा पूरा समय अब शिक्षा जगत को समर्पित था। और यही मेरा अपना सुख संतोष था । ××××××
इसी दौरान पूना के पास एक इंटरव्यू में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए मैं तीन-चार दिन के लिए गया ।दूसरे दिन जो उम्मीदवार आये थे , उनमें एक दुबली पतली सांवली लड़की भी थी जो गणित विषय की शिक्षिका बनने के लिए आई थी। दक्षिण भारतीय उस लड़की ने इतनी कुशलता से प्रश्नों के उत्तर दिए कि हमें वह ओवर क्वालीफाइड लगी। एकमत से वह चुन ली गई। और विद्यालय के स्टाफ में उसने जल्दी ही अपनी विशेष जगह बना ली। 5 महीने के बाद ,जब विद्यालय की निरीक्षण टीम में , शामिल होकर दोबारा मेरा स्कूल में जाना हुआ । ××××× तब तक उसने अपनी अद्भुत प्रतिभा से विद्यालय मे कार्यशाला बना डाली थी।गणित के अलावा वह दूसरे विषय भी पढा रही थी। कुल मिलाकर हमे लगा कि विद्यालय के लिये वह बडी जरुरत है। वह भी खुश थी और उसके दूसरे साथी भी।×××× विद्यालय के पास वह अपने पति और सास के साथ किराये के मकान में रह्ती थी।
फिर 6 महिने बाद मेरा दूसरी बार जाना हुआ। शाम के समय जब मै विद्यालय के गेस्ट रुम में, सब काम निपटाकर,
अखबार पढ रहा था, तब वही लड़की धीरे धीरे हाथ जोड़े हुए मेरे सामने आ खडी हुई। नन्दिनी नाम था उसका।दक्षिण भारतीय लहजे में वह सलीके से बोलने लगी। सर,मुझे आपसे कुछ काम है। मेरी सहमति पाकर वह बोली।कहने लगी ,क्या आप थोडी देर के लिये मुझेअपना मोबाइल देंगे? मुझे अपने पिताजी को फोन करना है। वे केरल में रहते हैं और बहुत बीमार है । मैंने चुपचाप अपना मोबाइल उसे दे दिया और वह वहां पास वाले कमरे में जाकर बात करने लगी। 15 मिनट बाद वह वापस आई और उसने मुझे मोबाइल लौटा दिया। इसके पहले कि मैं कुछ पूछता वह जल्दी से बाहर निकल गई ××××××× .... कुछ बातें दूसरों के द्वारा जानना ही सही होता है और इस तरह अनचाही उत्सुकता वश मुझे भी जानकारी मिल गई कि 1 वर्ष पहले ही इस का विवाह हुआ है। सास और पति बहुत परेशान करते हैं। इसकी पूरी तनख्वाह ले लेते हैं और केरल में उसके पिता बीमार हैं। वह उनसे बात भी नहीं कर सकती है।मां नहीं है, एक भाई है और पिता के साथ रहता है । भाई भी नहीं चाहता कि बहन वापस आए क्योंकि उसके वापस आने से कहीं संपत्ति पर अधिकार ना जमाने लगे।
इसी तरह समय निकलता गया वर्ष पूरा होने को था । मैं दूसरी बार विद्यालय में निरीक्षण के लिए गया, वह कुछ डरी सहमी सी लगी । उसके साथ काम करने वालों ने बताया कि लड़की का बहुत बुरा हाल है । सास और पति मारते भी हैं ।शरीर पर नील पड़े होते हैं कई बार । और भूखी भी आ जाती है स्कूल । शाम को जब मैं फिर गेस्ट रूम में बैठा था , वह धीरे से आ गई। बोली ,साहब मुझे अपना मोबाइल दे दो। मुझे पिताजी से बात करनी है । यह कुछ अजीब सा लगा, मैंने मोबाइल दे दिया । फिर वह 15 मिनट में मोबाइल वापस करने आई। पर इस बार जल्दी में नहीं थी, is मोबाइल लौटाते समय उसने मेरे हाथ पकड़ लिए और जोर-जोर से फफक फफक कर रोने लगी मैं थोड़ा सकपकाया कि अगर यह दृश्य किसी ने देखा होगा तो पता नहीं क्या सोचेगा और क्या-क्या टिप्पणी होगी ।वह मेरी बेटी से भी छोटी थी और उसके स्पर्श से मुझे अपनी बेटी की याद आ गई । ××××××××
फिर तो जब भी मैं जाता ,वह प्रतीक्षा करती रहती और कहती -
सर, बीच में एक दो बार और आ जाया करो, मेरा भला हो जाएगा। नाता मोबाइल उधार देने तक ही सीमित रहा ।और फिर कहानी ने नया मोड़ लिया ।×××××××
इस बार वह मोबाइल मांगने नहीं आई ।दूसरे साथियों ने बताया , कि उसे इसके सास और पति ने घर से निकाल दिया
है । उसका पूरा सामान ले कर , उसे एक कपड़े में, घर से बाहर कर दिया है। फिर उसके साथी लोगों ने उसके रहने, खाने-पीने और कपड़ों की व्यवस्था की । पुलिस में भी रिपोर्ट दर्ज करा दी गई है ।और अब तलाक का केस चल रहा है। पति पीछे पड़ा हुआ है और धमकी देता रहता है । इसकी जान को भी खतरा है।
• मौका पायेगा तो इसे मार ही डालेगा। मैं सुनकर बहुत दुखी हुआ पर मेरी कभी आमने सामने उससे बात भी नहीं हुई थी कैसे पूछता सब कुछ ? केवल मोबाइल उधार दिया था तीन चार बार ,बस यही नाता था।
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शाम होते होते वह फिर आ गई मैंने मोबाइल बढ़ा दिया, वह बोली, अब नहीं चाहिए साहब । अब किसी से बात नहीं करना है। फिर नीचे बैठ गई और फूट-फूट कर रोने लगी । बोली, साहब मेरी कहीं और नौकरी लगा दो ।आप तो बड़े अफसर हो, बहुत पहचान है आपकी ।मैं यहां पर मर जाऊंगी ।आप दुनिया के किसी भी कोने में मेरी नौकरी लगवा दो, मैं चली जाऊंगी । मैं इस जगह नहीं रहूंगी । मैं फिर सकुचाया। मैं फिर उसे उठाने लगा तब फिर वह मेरे हाथ पकड़ कर रोने लगी । मैं बस इतना कह पाया- यह मोबाइल रख लो । मना मत करना ।मैं मुंबई पहुंच कर बात करूंगा ।मुझे मेरी बेटी को ससुराल विदा करने वाला दृश्य याद आ गया ।
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अब वह देश के दूसरे कोने में किसी प्रतिष्ठित विद्यालय में कार्यरत है। फोन पर संपर्क करके , मैंने उसे नए स्थान में इंटरव्यू देने के लिए भेजा , तो उसकी केवल यही शर्त थी कि क्या आप उस नई जगह में कभी मुझसे मिलने आ सकेंगे ? आप मेरे मां बाप भाई बहन सब कुछ हो ।आपने ही मुझे जिंदगी का हौसला दिया है।।।
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मैंने आश्वासन दिया कि मैं इस विद्यालय से संरक्षक के रूप में जुड़ा हूं ।इसलिए कभी-कभी आया करूंगा।
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अब कहानी का नया अध्याय शुरू हुआ।1 महीने पहले जब मैं निरीक्षण के सिलसिले में उसके विद्यालय गया , तब सबकी नजरें बचाकर वह पास आकर बोली --सर शाम को आप मिलने का समय दीजिए। मना मत करना । फिर शाम को वह सज धज कर एक अजनबी के साथ आई । उसने परिचय कराया ।सर ,यह मेरे पति है। अभी पिछले महीने हम दोनों ने शादी की है। फिर शर्माते हुए ,अपने थैले में से मिठाई और इडली निकाली ।बोली --सर प्लीज खा लीजिए ।हम अपनी शादी पर किसी को बुला नहीं सके। पहले वाले लोग बहुत परेशान कर रहे थे।।
और उसने लपक कर मेरे पैर छू लिए । उसकी आंखों से आंसू टपक रहे थे ।पर अब मुझे उस दृश्य के जाहिर होने का कोई डर नहीं था। उसका पति जो था साथ में । उसने मेरे दोनों हाथ उठाकर अपने सिर पर रख लिये और बोली - आपने मुझे जीने का सहारा दिया है , अब आशीर्वाद भी दीजिये ।
मैं मुस्कुराया। मैंने कहा -सदा सुखी रहो और तुम्हारी शादी की गिफ्ट , वह मोबाइल तो मैंने पहले ही दे दिया है। हम तीनों जोर से हंस पड़े। तभी चपरासी दौड़कर आया बोला चाय ले आऊँ साहब।
..उसने अपने पर्स से एक फोटो निकली।।।शरमा कर देते हुए बोली।।।।सर,प्लीज ये मेरी शादी की फोटो रख लीजिये।।।।मेरी छोटी सी निशानी।।।।वह फोटो अब भी मेरे पास है।।उसके दुख और सुख के दिनो की याद दिलाती हुई।
जीवन में ऐसा भी कुछ कभी हो जाता है जो भुलाए नहीं भूलता।।
जीवन की ऊबड़-खाबड़ पथरीली राहों में कभी किसी संवेदनशील मार्गदर्शक का मिलना भी एक सुखद संयोग और सौभाग्य ही माना जाएगा।
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