यात्रा
- मिथिलेश कुमारी
यात्रा
शाखा टूटी ,पर्ण झड़ गए ,
जड़ें जमीं से जुड़ी हुई है।
केवल ठूंठ बचा है जर्जर ,
फिर भी वृक्ष अभी जिंदा है ।
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चलते पांव थक गए,
और खत्म पाथेय हो गया।
फिर भी सांस चलेगी जब तक,
बंधन नहीं टूट पाएंगे ।।।
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ग़म ना कर जो सूरज डूबा ,
नभ में तारे भी क्या कम है?
अंधकार में दीप चमकता,
देख यही जीवन का क्रम है।।।
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धीरे धीरे दिशा खोज ले ,
इक दिन मंजिल मिल जाएगी ,
फिर उस पार चले जाना है ,
डोरी नहीं टूट पाएगी।।।।
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