शब्दों की विवशता
-मिथिलेश कुमारी
शब्द तो आये अधर पर ,
किंतु स्वर कब निकल पाए
है अकिंचन स्वयं ही जो,
क्या कहा कैसे लुटाये ?
मैं रही पथ की भिखारिन ,
द्वार पर कैसे बुलाती ?
शूल थे बोये भला ,
कैसे सुमन की सेज पाते?
किंतु ओ परमात्मा ,
इतना मुझे वरदान दे दे,
शूल पथ के बीन पाऊ,
हाथ में अधिकार दे दे ।।
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