फूलों से
- मिथिलेश कुमारी
हम फिर खिलेंगे
झर गए तो क्या हुआ ?हम फिर खिलेंगे...
मृत्यु कैसे छीन लेगी ?
फिर जिएंगे ,फिर जिएंगे ....
धूल में मिलना
नियति सब की यही है ,
धूल में विश्राम करके
फिर उठेंगे ,फिर उठेंगे ...
दिन सदा ढलता रहा है ,
रात भी लंबी नहीं है,
फिर सुबह होगी मुसाफिर
चल पड़ेंगे चल पड़ेंगे ....
सुबह छुपती सांझ में है ,
रात जुड़ती प्रात से है,
चक्र चलता ही रहेगा
क्यों रुकेंगे ?फिर मिलेंगे .....
घूम फिर हम खोज लेंगे
डोर टूटेगी नहीं
तुम छोड़ना मत
फिर जुड़ेंगे ,फिर मिलेंगे....
जिंदगी के बाद भी
जीते रहेंगे
मृत्यु कैसे रोक लेगी ?
फिर मिलेंगे ,फिर मिलेंगे....
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