बचपन की गलियों ........ से गुजर के
-मिथिलेश कुमारी
बचपन की गलियों से .......
याद आते हैं मुझे दूर तक दिखाई देते,
टेसू के लाल जंगल जिसे हसरत से,
देख कर उन कुंवारे दिनों में,
कविता करने को मन चाहता था.......
याद आती है मुझे इठलाती बलखाती,
वह काली लंबी सड़क जिसने मेरी,
मूक व्यथा को सिसकते सुना था,
उस सड़क का एक छोर ,
मेरा अपना घर था और,
दूसरा स्कूल जहां मैं पढ़ाती थी।।
याद आती है मुझे भाभी की,
रोष भरी आंखें,
भैया की याचक सी चुप्पी
और दोनों के बीच बोझ बना,
मेरा वह कुंवारापन जिसे,
झेलने को विवश थी,
विधि के विधान की तरह।
याद आती हैं मुझे मां की
झील सीआंखें जिन में तैरती
व्यथा की बूंदे डूबती उतराती आहें
नहा जाती थी मैं और,
निचुडा करती थी तनहाई में जाकर।।
और फिर जिंदगी का एक मोड़,
आशा की कलिकाएं, सपनो का संसार,
सच्चे झूठे सपनों को झीने,
कपड़ों में लपेटे हम तुम दोनों,
छिटकते बिखरते डूबते उतराते,
टूटी पतवार खेते फिर भी,
एक नाव में बैठ चल पड़े थे हम।।
और अब
12 वर्षों का अंतराल,
कहां से टूट कर कहां से जुड़ गई मैं,
पता नहीं हम दोनों को।
तुम्हें भी होता होगा एहसास,
उस सूनेपन का, जो मुझे होता है,
तुम्हारे एक क्षण के छोटे से अभाव में,
तुमने मेरे लिए जो कुछ भी किया,
जो कुछ भी सहा, मेरे अदने अस्तित्व ने
पूरी तरह से स्वीकारा और मेरे,
वजूद का भार तुम्हारे कंधों पर उतारा।
याद आते हैं मुझे दूर तक दिखाई देते,
टेसू के लाल जंगल जिसे हसरत से,
देख कर उन कुंवारे दिनों में,
कविता करने को मन चाहता था.......
याद आती है मुझे इठलाती बलखाती,
वह काली लंबी सड़क जिसने मेरी,
मूक व्यथा को सिसकते सुना था,
उस सड़क का एक छोर ,
मेरा अपना घर था और,
दूसरा स्कूल जहां मैं पढ़ाती थी।।
याद आती है मुझे भाभी की,
रोष भरी आंखें,
भैया की याचक सी चुप्पी
और दोनों के बीच बोझ बना,
मेरा वह कुंवारापन जिसे,
झेलने को विवश थी,
विधि के विधान की तरह।
याद आती हैं मुझे मां की
झील सीआंखें जिन में तैरती
व्यथा की बूंदे डूबती उतराती आहें
नहा जाती थी मैं और,
निचुडा करती थी तनहाई में जाकर।।
और फिर जिंदगी का एक मोड़,
आशा की कलिकाएं, सपनो का संसार,
सच्चे झूठे सपनों को झीने,
कपड़ों में लपेटे हम तुम दोनों,
छिटकते बिखरते डूबते उतराते,
टूटी पतवार खेते फिर भी,
एक नाव में बैठ चल पड़े थे हम।।
और अब
12 वर्षों का अंतराल,
कहां से टूट कर कहां से जुड़ गई मैं,
पता नहीं हम दोनों को।
तुम्हें भी होता होगा एहसास,
उस सूनेपन का, जो मुझे होता है,
तुम्हारे एक क्षण के छोटे से अभाव में,
तुमने मेरे लिए जो कुछ भी किया,
जो कुछ भी सहा, मेरे अदने अस्तित्व ने
पूरी तरह से स्वीकारा और मेरे,
वजूद का भार तुम्हारे कंधों पर उतारा।
काश में चुका पाती,
जो कुछ तुमने मेरे लिए,
आत्मीयता से किया,
उसका थोड़ा सा आभार मेरी,
मूक प्रार्थना में फलीभूत हो पाता।।
xxx xxx xxx
आत्मीयता का प्रतिदान आभार पूरित आत्मीयता
जवाब देंहटाएंमूक प्रार्थना में निश्चित ही फलीभूत हो जाता
Thanks sudha...tum mere bachpan ki sakshi ho
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