परछाइयां
- मिथिलेश
- मिथिलेश
उम्र की परछाईयां लंबी हुई हैं,
उम्र की परछाईयांं लम्बी हुई हैं,
और कांधे रखी कांवर,
भीग कर भारी हुईं है,
और कांधे रखी कांवर,
भीग कर भारी हुई है ।१।
और कब तक ?
और कब तक ?
थक गए हैं पांव मेरे,
दूर कब तक ?
मंजिलें दिखती नहीं हैं,
मंजिलें दिखती नहीं है।२।
बस चला चल,
राह पर चुपचाप धीरे,
राह पर चुपचाप धीरे,
और इस अविराम गति से,
इस जगत में हाय
तेरी नियति है यह,
आह, तेरी नियति है यह।३।
उम्र की परछाइयां लंबी हुई हैं,
उम्र की परछाइयां लंबी हुई है।।।
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