मेरा शापित मन
-मिथिलेश
-मिथिलेश
कितना शापित मन मेरा,
क्षार क्षार हो गया कि वह मन,
जिसको मैने प्यार दिया था,
तार तार हो गया वसन वह,
जिसको मैने पहन लिया था।
कितना शापित मन मेरा।
खंड खंड हो गई मूर्ति वह,
जिसको मैने नमन किया था,
टूट टूट गिर गई डाल,
जिसका मेंने आधार लिया था।
कितना शापित मन मेरा।
ताक लिया जिसको जी भर,
वह फूल गिर गया धरती पर,
और क्षितिज से दूर हो गए,
जिनको खोजा धरती पर था।
कितना शापित मन मेरा।
शूल उगा मत्सर का भी,
वह मंजुल कुसुम कलेवर पर था,
जिसकी कोमलता को पाकर,
अनुप्राणित मेरा अंतर था।
कितना शापित तन मन मेरा।
कितना शापित तन मन मेरा।।
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