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मेरी गरल भरी गागर


मेरी गरल भरी गागर
                   -मिथिलेश


      मेरी गरल भरी गागर

मेरी गरल भरी गागर को ,
दुनिया गंगाजल क्यों समझे।।
  
सबकी अलग अलग उलझन है,
अलगअलग है परिभाषाएँ ,
 अपने मन की गांठ खोल दे,
जग को क्या, सुलझे न सुलझे ,......

 मेरी गरल भरी गागर को,
 दुनिया गंगाजल क्यों समझे।।

  सबकी अलग अलग नज़रें हैं  ,
  अलग अलग  ही हैं  वातायन,
  तूने अपनी लघु सीमा को,  
   उनका दरवाज़ा क्यों समझा ?

 मेरी गरल भरी गागर को,
 दुनिया गंगाजल क्यों समझे।।

  बाहर  बहतीं  विषम बयारें,
  भीतर भी मौसम तूफानी,
  क्यों शब्दों में राज़ खोल दूँ ?
  जग की क्या, समझे न समझे?

 मेरी गरल भरी गागर को,
 दुनिया गंगाजल क्यों समझे।।

पाप पुण्य की परिभाषाएँ, 
सबकी अपनी अलग अलग  है,
अपने अपने  पैमाने से, 
सुख दुःख के भी माप अलग हैं,
कोई नई  राह खोजे तो, 
जग उसको  भटकन क्यों समझे?

 मेरी गरल भरी गागर को,
 दुनिया गंगाजल क्यों समझे।।

धरती सबकी एक सही पर,
आसमान अपना अपना  है,
रात सभी की एक  किन्तु ,
 सपने देखे सबने अपने हैं,...
पंख लगा उड़ते यौवन को,  
दुनिया पागलपन क्यों समझे ?

मेरी गरल भरी गागर को,
 दुनिया गंगाजल क्यों समझे।।



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  2. गरल भरी गागर और गंगाजल सुन्दर कल्पना

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