खेत में फसल
- मिथिलेश कुमारी
खेत में जब फसल ऊगी,
लहलहाती, मुस्कुराती,
पवन ने उसको दुलारा,
और सूरज की किरण ने
चुनरिया पीली ओढा दी,
चटक रंग की, चमचमाती-----'
काटकर जो ले गया ,
अधिकार से, उसको बता दो,
जड़ बिलखती छोड़ कर ,
शाखा नहीं जीती अकेली!
टूट जाती,सूख जाती,
जिन्दगी के तरल रस को
दूर से ही देखकर,
फिर तरस जाती --तरस जाती----
बेबसी में कुनमुनाती,
सकपकाती, तड़फड़ाती,
पर शिकायत करे किससे?
सह न पाती, कह न पाती ,
और फिर अवसाद के,
गहरे कुएं में,
उम्र भर को डूब जाती।
उम्र भर को डूब जाती----
खेत में फसल
खेत में जब फसल ऊगी,
लहलहाती, मुस्कुराती,
पवन ने उसको दुलारा,
और सूरज की किरण ने
चुनरिया पीली ओढा दी,
चटक रंग की, चमचमाती-----'
काटकर जो ले गया ,
अधिकार से, उसको बता दो,
जड़ बिलखती छोड़ कर ,
शाखा नहीं जीती अकेली!
टूट जाती,सूख जाती,
जिन्दगी के तरल रस को
दूर से ही देखकर,
फिर तरस जाती --तरस जाती----
बेबसी में कुनमुनाती,
सकपकाती, तड़फड़ाती,
पर शिकायत करे किससे?
सह न पाती, कह न पाती ,
और फिर अवसाद के,
गहरे कुएं में,
उम्र भर को डूब जाती।
उम्र भर को डूब जाती----
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