माँ की याद में
-मिथिलेश
मुझे याद हैं अब भी
वो गहरी झील सी आंखें ।१।
सतह पर तैरता दर्द का सैलाब,
करुणा से झुकी पलकें,
भगवान के आगे झुका माथा,
और ओठों से छूटते वो शब्द,
"बहुत हो गया" और कब तक ।२।
मुझे याद है अब भी,
एक आने की मूंगफली में,
एकादशी का फलाहार,
एक पुरानी धोती में,
साल भर के बीतते त्योहार ।३।
मुझे याद है अब भी,
तुम्हारा अकेले में कहना,
तुम्हारे पिता बड़े भले थे,
कभी किसी का दिल नहीं दुखाया,
कभी ज़ोर से नहीं बोले,
जब ज़िंदा थे, बड़े ज़िंदादिल थे ।४।
तुम्हारे निष्पाप शब्दों से बनी,
पिताजी की वह तस्वीर,
मुझे वर्षों प्रेरित करती रही,
मन के इस खालीपन को,
आदर्शों से भरती रही ।५।
आज भी जब हार जाती हूं,
बौछारों से जब बोझिल हो जाती हूं,
तुम्हारी झील सी आंखें,
मुझे अंदर तक पिघला जाती है ।६।
तुम्हारे शब्द। बार बार
मेरे कानो से टकराते हैं,
बेटा, यही सही,
ऐसा भी होता है,
ज़िन्दगी ऐसे ही जी लो,
जो कुछ भी मिला है,
उसे खुशी खुशी ले लो,
उसे खुशी खुशी ले लो ।७।
हमारे बीच कायम है,
जहां दो लोक की दूरी,
दिलों के पास लेकिन
बहुत ही सामिप्य का,
आभास होता है ।८।
तुम्हारा हाथ सिर पर,
अभी भी महसूस होता है।
तुम्हारी झील सी आंखें,
मुझे बस याद है इतनी,
किसी गहरी व्यथा का,
डूबकर तिरना ।९।
मुझे महसूस होता है
तुम्हारा हाथ सिर पर,
आज भी महसूस होता है ।१०।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें