ठहरो दीप अभी मत बुझना
- मिथिलेश
ठहरो दीप अभी मत बुझना
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ठहरो दीप अभी मत बुझना।
ज्वालाओं को जल जाने दो,
युग युग की भूखी लपटों को,
सारा विश्व निकल जाने दो .....
-ठहरो दीप अभी मत बुझना---
अभी बहुत सरगर्मी नभ में ,
थोड़ा दृश्य बदल जाने दो,
लगता राहें शूल भरी है,
कुछ तो मुझे संभल जाने दो ,,,,,,
--ठहरो दीप अभी मत बुझना।
किसका साथ कहां तक होगा
ये सब बातें अनजानी है ,
आसपास है सभी अजनबी
मन को जरा बहल जाने दो,,,,,,
---ठहरो दीप अभी मत बुझना।।
कितना यह कोहराम मचा है ,
इस क्रदन को थम जाने दो ,
थोड़ा जहर बचा प्याले में
धीरे-धीरे पी लेने दो,,,,,,,
--ठहरो दीप अभी मत बुझना ।।
क्या सत्ता की भूखी लपटें
सारा विश्व निकल जाएंगी ?
मानवता की मोमबत्तियां,
शायद सभी पिघल जायेंगी ?
ठहरो दीप ,अभी मत बुझना।।
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