पीड़ा का दंश
- मिथिलेश कुमारी
- मिथिलेश कुमारी
पीडा का दंश
पीड़ा का वह दंश,
और तड़पन यह मन की,
शब्दों के वे तीर और,
उलझन जीवन की .....
किसे दिखाकर तपन बुझा लूं?
किसे सुनाकर अश्रु बहा लूं?
किसके कंधे माथा टेकूं?
किसके चरण, शरण मैं पा लूं? ...
वृद्ध हुए सपने सज सज कर,
कैसे बीत गई तरुणाई,
पीड़ा चिर नवीन हो बैठी,
साथ रही बन कर तनहाई......
सुबह शाम की लुकाछुपी में
कोई किसी को पकड़ न पाया
सूरज चन्दा दोनों हारे
आसमान ने है भरमाया....
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