मन की मनमानी
-मिथिलेश
-मिथिलेश
मन की मनमानी
मन भी बहुत अजीब है,
कितनी मनमानी करता है ,
जब मन करे उसका
कहीं भी भाग जाता है ं .......
मन भी कितना अजीब है।
कोई परमीशन नहीं लगती उसे,
और न कोई ' नो ऑब्जेक्शन ' ,
एक सेकंड में कहाँ से कहाँ
टाइम बेटाइम पहुँच जाता है ,.........
मन भी कितना अजीब है।
और कुछ भी कहीं भी,
किसी के साथ करने लगता है ,
ऐसा कुछ, जिसे शब्दों की आंखे,
देखने से कतराती हैं .......
मन भी कितना अजीब है।
कैसा बेलगाम है यह मन ,
कितनी मनमानी करता है ?
कहाँ कहाँ रोकूँ इसको ,
क्या करूँ इसका मैं अब ? .......
मन भी कितना अजीब है
कितनी मनमानी करता है।।
------------------
मन से बड़ा कोई बंदर नहीं
जवाब देंहटाएंइसीलिए तो
बेलाग है
बेलगाम है
और इंसान हैरान है
परेशान है.