सच को कहना भी गुनाह है
- मिथिलेश
- मिथिलेश
सच यदि बहुत असुन्दर हो तो,
सच को कहना भी गुनाह है।१।
भरा समुन्दर भी नहीं बुझाता,
प्यास अधरों की बूंदों वाली,
पीने का अधिकार न हो तो ,
प्याली छूना भी गुनाह है।
सच यदि बहुत असुन्दर हो तो,
सच को कहना भी गुनाह है।२।
नभ सूना है, धरती काली,
उस पर रात अमावस वाली,
पर नगरी अंधों की हो तो ,
दीप जलाना भी गुनाह है ।
सच यदि बहुत असुन्दर हो तो,
सच को कहना भी गुनाह है।३।
उनकी तेज़ चाल के आगे,
मेरे कदम बहुत छोटे हैं,
हाथ पकड़ कर तो चले ,
पर फेरे लेना तो गुनाह है ।
सच यदि बहुत असुन्दर हो तो,
सच को कहना भी गुनाह है।४।
जब घेरे में दौड़ रहे हों,
कोई कहीं नहीं पहुंचेगा,
लक्ष्य अगर अनचीन्हा हो ,
तो तेज़ भागना भी गुनाह है।
सच यदि बहुत असुन्दर हो तो,
सच को कहना भी गुनाह है।५।
सब के मन होती अभिलाषा,
जग निषिद्ध कुछ कर जाने की ,
भीतर के इस पागलपन को ,
ज़ाहिर करना भी गुनाह है।
सच यदि बहुत असुन्दर हो तो,
सच को कहना भी गुनाह है।६।
सच को कहना भी गुनाह है।१।
भरा समुन्दर भी नहीं बुझाता,
प्यास अधरों की बूंदों वाली,
पीने का अधिकार न हो तो ,
प्याली छूना भी गुनाह है।
सच यदि बहुत असुन्दर हो तो,
सच को कहना भी गुनाह है।२।
नभ सूना है, धरती काली,
उस पर रात अमावस वाली,
पर नगरी अंधों की हो तो ,
दीप जलाना भी गुनाह है ।
सच यदि बहुत असुन्दर हो तो,
सच को कहना भी गुनाह है।३।
उनकी तेज़ चाल के आगे,
मेरे कदम बहुत छोटे हैं,
हाथ पकड़ कर तो चले ,
पर फेरे लेना तो गुनाह है ।
सच यदि बहुत असुन्दर हो तो,
सच को कहना भी गुनाह है।४।
जब घेरे में दौड़ रहे हों,
कोई कहीं नहीं पहुंचेगा,
लक्ष्य अगर अनचीन्हा हो ,
तो तेज़ भागना भी गुनाह है।
सच यदि बहुत असुन्दर हो तो,
सच को कहना भी गुनाह है।५।
सब के मन होती अभिलाषा,
जग निषिद्ध कुछ कर जाने की ,
भीतर के इस पागलपन को ,
ज़ाहिर करना भी गुनाह है।
सच यदि बहुत असुन्दर हो तो,
सच को कहना भी गुनाह है।६।
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जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंआज की सच्चाई
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