कसक - एक शब्द कथा
-मिथिलेश कुमारी
-मिथिलेश कुमारी
तेरे अनबोले शब्दों में,
क्या-क्या कथा कही
क्या बसंत जाने पतझड़ ने,
क्या-क्या व्यथा सही।
भूल हुई शब्दों में कैद किया
पीड़ा का पंछी बेताब
क्या जाने उड़ने को काफी था
मन का मटमैला आकाश।।
एक कसक......
मैं धरा की धूल हूं तुम,
शीश पर कैसे बिठाते,
मैं समय की भूल हूं,
तुम द्वार पर कैसे बुलाते।
तपन मन की क्यों बुझाने
आंख में जल बूंद आई ?
व्यथा की काली घटा,
विद्युत छटा में छिप न पाई।
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