यादों के झरोखे -मिथिलेश खरे यादों के झरोखे *मिथिलेश खरे मेरी बेटी की व्यस्त जिंदगी में , यादों की गुजरती गलियों में , ऐसा भी आयेगा एक दिन मेरे जाने के बाद .... जब मेरी पूजा की चौकी के नीचे भरा वर्षों का खजाना , छोटी छोटी चीजों से भरा वह कचरा हां कचरा ही कहती थी उसे वह नहीं फेक पाएगी कभी भी---- निकाल कर देखा करेगी , जिल्द फटी रामायण , पहिले पन्ने पर रखी तस्वीरें श्री मां और अरविंद की , आखिरी पन्ने पर दबा पुराना पीला पड़ा लिफाफा, और उसमें गुलाब की पंखुड़ियां ! मेरी दीक्षा के फूल, सूखे ,मुरझाए ,पर पूरे जीवंत उन्ही फूलों के स्पर्श में, जीती रहूंगी मैं --पता है मुझे , मरने के बाद भी जीती रहूंगी मैं जीती रहूंगी मैं ...... ...
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