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वे अंकल जो कभी बोले नही

  वे अंकल जो कभी बोले नही                   - मिथिलेश   वे   अंकल जो कभी बोले नही ___________________        सिहोरा  के हमारे  पुश्तैनी घर में बहुत लोग  थे।... भाई, बहिन, भाभियां, भाभियो के बच्चे, बड़ी बुआजी, मां। घर के पास ही एक दुकान थी ।जिसे सब मामाजी की दुकान कहते थे। हमें उस दुकान में सब कुछ मिलता था। कागज, पेंसिल, किताब, फाउंटेन पेन, ज्योमेट्री बॉक्स, स्लेट। सबसे बाहर  रखी , कांच की बरनियो में मीठी गोलियां होती थी, पीली लाल सफेद.. पेपरमिंट की, संतरे के रंग  की  लेमनचूस  की, जीरा बटी की छोटी छोटी खट्टी मीठी  छोटी छोटी गोलियाँ । वही सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र था, हम बच्चों के लिए।                    कुछ  अधेड उमर के लोग भी दुकान के सामने जमा होते थे ।बाजू में कोई पान की दुकान थी और मामाजी की दुकान में सिगरेट के पैकेट भी रखे होते थे।मामाजी कुछ लाइटर जैसी चीज भी रखते हैं जिस से आग की  लौ निकालकर,सिगरेट ...