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बचपन की गलियां

बचपन की गलियों ........ से गुजर के                             -मिथिलेश कुमारी          बचपन की गलियों से  .......    याद आते हैं मुझे दूर तक दिखाई देते,   टेसू  के लाल जंगल जिसे हसरत से,   देख कर उन कुंवारे दिनों में,   कविता करने को मन चाहता था.......       याद आती है मुझे इठलाती बलखाती,       वह काली लंबी सड़क जिसने मेरी,       मूक व्यथा को सिसकते सुना था,       उस सड़क का एक छोर ,       मेरा अपना घर था और,       दूसरा स्कूल जहां मैं पढ़ाती थी।।  याद आती है मुझे भाभी की,  रोष भरी आंखें, भैया की याचक सी चुप्पी और दोनों के बीच बोझ बना,  मेरा वह कुंवारापन जिसे, झेलने  को विवश थी,  विधि के विधान की तरह।        याद आती हैं मुझे मां की       झील सीआंखें जिन में तैरती       व्य...